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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
क्रम वद्ध वारिसोंमें ही सपिंड एवं समानोदक होते हैं सपिंड ५७ दर्जे तक मानकर भागेके सब समानोदक माने जाते हैं इसलिये 'सकुल्य' शब्दका यहां पर प्रयोग समानोदकोंसे है । दूसरी तर्क यह है सकुल्यके बाद मनु आचार्य को जायदाद पहुंचनेका नियम करते हैं तो समानोदक कहां चलेगये ? जिनका ज़िक्र ही नहीं किया गया इस सबबसे भी मनुके इस जगहपर सकुल्यके प्रयोग से समानोदक जानना सर्वथा उचित होगा । दफा ५८९ सापण्ड और समानोदक
इस दफाके शामिल नक़शेमें सपिण्ड और समानोदक दिखाये गये हैं। ५७ सपिंड हैं और १४७ समानोदक हैं। इस जगहपर आप यह ध्यान रखें कि 'सपिंड' कहने में 'पूर्णपिंड सपिंड' और 'सपिंड' दोनों शामिल हैं । नक़शेमें देखिये कि मालिकके नीचेकी शाखामें नं०१ से ३ तक और मालिकसे ऊपर की शाखामें १ से ३ तक (बा) लाइनके लोग 'पूर्णपिंड सपिंड' में शामिल हैं विस्तृत वर्णन इस किताबकी दफा ५८२ में देखो क़ानूनकी दृष्टिसे समानोदकोंका जानना इसलिये बहुत ज़रूरी है कि मृत पुरुषकी जायदाद सपिंडके याद समानोदकोंको उत्तराधिकारमें पहुंचती है। समानोदकों की संख्या अभी तक निश्चित नहीं हुयी मगर जहां तक माने जा चुके हैं वे इस नक़शेमें बताये गये हैं। प्रत्येक मुक़द्दमे में जब दूरकी रिश्तेदारीके अनुसार जायदाद मिलने का कोई व्यक्ति वारिस अपने को बताता है तो उसे सिलसिला वरासत साबित करना बहुत कठिन हो जाता है। प्रथम तो उतने पुराने वयोवृद्ध सैकड़ों वर्ष के पुरुष शहादतको नहीं मिलते दूसरे काग़ज़ी शहादत सिलसिलेवार मिलना कठिन हो जाता है। हमारे देशमें प्रत्येक व्यक्ति अपने वंशका इतिहास तक नहीं लिखता। इन्हीं अनेक कठिनाइयोंसे समानोदकोंको जायदाद यद्यपि पहले पहुंचती है परन्तु शहादत न होनेकी दशा में प्रिवी कौन्सिल का मत यह जान पड़ता है कि ऐसी दशाके होनेपर जायदाद बन्धुओंको देदी जाय । यह राय समीचीन है जब समानोदक अपने हक़का सिलसिला साबित न कर सकें तो ज़रूर बन्धुओंको जायदाद दी जाना चाहिये। इस नकशेसे आर बन्धुओंका सिलसिला और विस्तार जान सकेंगे तथा यह भी जान सकेंगेकि किस दर्जेके सपिंडके पश्चात् कौन दर्जे के समानोदक होते हैं। दर्जाके अङ्क प्रत्येक के साथ इसीलिये लगा दिये हैं।