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दफा ६०५]
सपिण्डोंमें वरासत मिलनेका क्रम
के मर जानेपर बापकी जायदाद लड़कियों को मिलती है, देखो--प्राणजीवन दास तुलसीदास बनाम देवकुंवरि बाई (1859) 1 Bom. H. C. 130.
(३) लड़कियोंमें विभाग-पराशरजी कहते हैं कि"अपुत्रस्य मृतस्य रिक्थं कुमारी गृह्णीयात् तद्भावे चोदा।
अर्थात् मृत पुरुषका धन पहिले कुमारी लड़की (जिसका ब्याह नहीं हुआ) लेवे, और उसके न होनेपर विवाहिता लड़की लेवे । कानूनमें भी ऐसा ही माना गया है। फरक यह है कि पराशरने पहले हक़ क्वारी लड़कीका और दूसरा ब्याहीका रखा है, कानूनमें ब्याही लड़कीमें भी भेद डालागया है।
बापकी जायदाद पहिले बिनव्याही लड़कीको मिलेगी, उसके पीछे उस लड़कीका हक होगा जिसका ब्याह होगया है लेकिन गरीब (खाने पीने की तंगी) है, और सबसे पीछे उस लड़कीका हक होगा जिसका ब्याह होगया है और धनवान है; देखो-जमुनाबाई बनाम खिमजी 14 Bom. 113. टटवा बनाम वसवा 23 Bom. 229. अवधकुमारी बनाम चन्द्राबाई 2 All. 561, उन्नो बनाम डरवो 4 All. 243.
(१) बिन ब्याही लड़की (क्वारी) (२) व्याही और गरीब ( ससुरालवालोंकी गरीबी) (३) व्याही और आसूदा (ससुराल वालोंका धनवान होना)
पहिले दर्जेकी लड़कीके होते हुये, दूसरे दर्जेकी लड़की, और दूसरे दर्जेकी लड़कीके होते हुये तीसरे दर्जेकी लड़कीका हक़ न होगा।
(४) जब एकही दर्जेकी अनेक लड़कियां हों-जब किसी मृत पुरुष के दो या दो से ज्यादा लड़कियां एकही दर्जेकी हों तो वह सब बापकी जायदाद सरवाइवरशिपके हनके साथ ( देखो दफा ५५८) विधवाओंकी तरह लेती हैं। देखो-अमृतलाल बनाम रजनीकांत ( 1876) I. A. 113, 1267 15 Beng. L. R. 10, 24.
एक पुत्री जो अपने पिताकी जायदाद वरासतसे प्राप्त करती है, परित मित अधिकारिणी होनेके कारण, उस जायदादका इन्तकाल कामिल, बिना उसकी कानूनी आवश्यकताके नहीं कर सकती। वह उस जायदादपर भावी वारिसोंके खिलाफ अपने खास कर्जके लिये या निजी मतलबके लिये पाबन्दी नहीं कर सकती, किन्तु वह ऐसी पाबन्दी अपने जीवनकालके लिये कर सकती है। पत्री केवल अपने जीवन भरके अधिकारका ही इन्तलाल कर सकती है और उस व्यक्तिकी तहरीकपर जिसके हकमें इन्तकाल किया गया है उस इन्तकालके बटवारेका अमल हो सकता है-साहदेवसिंह बनाम किशनबिहारी पांडे 90 I. C. 559; 1925 P. H. C.C. 292; A. I. R. 1925 Pat.820.
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