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दफा ६०४]
सपिण्डोंमें वरासत मिलनेका क्रम
.. श्राया विधवाकी जायदाद ग्रांट द्वारा कायमहो सकती है ? जज कुमार स्वामी को इस बातमें सन्देह है । स्पेशर चीफ़ जस्टिसका मत है कि विधवा की जायदादका वसीयत या ग्रांट द्वारा कायम किया जाना सम्भव है और यह कानून द्वारा भी पैदा हो सकती है:-महाराजा कोल्हापुर बनाम एस. सुदरम् अय्यर 48 Mad. 1; A. I. R. 1925 Mad, 497.
विधवा जायदादके लाभके लिये किसी कानूनी सुलहनामेकी पाबन्दी जायदादपर कर सकती है, किन्तु ज़रूरतसे अधिक रकमके सुलहनामेकी पाबन्दी जायदाद पर न होगी, देखो-बसावन बनाम नाथा A. I. R. 1925 Oudh. 30.
विधवा द्वारा प्राप्त की हुई जायदाद-इस आम सिद्धान्तमें कि कोई हिन्दू विधवा किसी जायदादपर कब्ज़ा मुखालिफ़ाना रखनेकी हालतमें उसे अपना अलग स्त्रीधन जायदाद समझती है, इस पावन्दीकी आवश्यकता है कि आया उसने उस जायदादको बहैसियत अपने पतिकी विधवाके पैदा किया है ? अन्तिम सूरतमें वह जायदाद उसके पतिकी इजाफा जायदाद हो नाती है और वह वरासतसे विधवाके वारिसोंको नहीं बल्लि उसके पतिके वारिसोंको मिलती है-जगमोहनसिंह बनाम प्रयागनारायण 87 I.C.473; 3 Pat. L. R. 251; 1925 P. H. C.C. 140, 6 Pat. L. J. 206, A. I. B. 1925 Pat. 5230
स्वयं उपार्जित सम्मत्ति-किसी व्यक्तिकी स्वयं उपार्जित सम्पत्तिपर उसकी विधवाका बमुक़ाबिले उसके पिताके ज्यादा नज़दीकी सम्बन्ध हैमु० जीराबाई बनाम मु० रामदुलाराबाई 89 I. O. 991.
क़ब्ज़ेका लिया जाना, जबकि बहैसियत विधवाके वह नहीं प्राप्त किया जा सकता था, वस्तुतः सम्पूर्ण अधिकारको पैदा करता है जैसे कब्ज़ा मुखा. लिफ़ाना-लालबहाहरसिंह बनाम मथुरासिंह 87 1. C. 164; A. I. R. 1925 Oudh 669.
. यदि किसी विधवाका कब्ज़ा मुखालिफ़ाना, अन्तिम पुरुष अधिकारीके जीवनकालसे ही आरम्भ होता है तो मियादका सिलसिला विधवाके कब्जेके वक जारी रहेगा, किन्तु यदि कब्ज़ा मुखालिफाना अन्तिम पुरुष अधिकारीकी मृत्युके पश्चात् विधवाकी ताहयात कब्जेदारीके मध्य आरम्भ होता है तो विधवाकी मृत्युके बादसे भावी वारिसोंके खिलाफ मियादका चलना शुरू होगा। जब विधवा केवल परवरिशकी अधिकारिणी हो तो उसका कब्जा मुखालिफाना माना जायगा, यदि इस बातका कोई सुबूत न हो, कि वह किसी अन्य प्रबन्धसे है-भगवानदीन बनाम अजोध्या 87 I. C. 1021; A. I. R. R. 1925 Oudh. 729.
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