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दफा ५६०-५६४ ]
मदका उत्तराधिकार
दोहिता, आदि । भिन्न गोत्रज सपिण्डको मिताक्षराला में 'वन्धु' कहा गया है: और वह प्रायः 'बन्धु' के नामसे प्रसिद्ध हैं ।
दफा ५९२ उत्तराधिकारमें सपिण्ड शब्दका संकेत अर्थ भाना
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गया है
गोत्रज सपिण्ड दो भागोंमें बेटा है एक 'सपिण्ड' दूसरा 'समानोदक' | समानोदकमें गोत्र एकही रहता है । मिताक्षराला में 'सपिण्ड' शब्दका अर्थ: दो तरह से किया गया है । एक अर्थ विस्तृत है दूसरा संकेत है। जहां पर सपि - एड शब्दका विस्तृत अर्थ किया जाता है वहांपर मृत पुरुषके वह सब रिश्तेदार शामिल हैं जो उसके खूनके द्वारा परम्परा सम्बन्ध रखते हैं । और जहां पर संकेत अर्थ किया जाता है वहां पर मृत पुरुषकी सात पीढ़ी तक जो उसके खून के सम्बन्ध से रिश्तेदार हैं माने जाते हैं । उत्तराधिकारमें जो सपिण्ड शब्दका प्रयोग किया गया है वह संकेत अर्थमें किया गया है। यानी वरासत कै कामके लिये सपिण्ड शब्द के अर्थका फैलाव सिर्फ मृत पुरुषकी सात पीढ़ी तक माना गया है ज्यादा नहीं माना गया । इसलिये कारण रखना चाहिये कि जहां पर इस विषयमें सपिण्ड शब्द आवे उसका मतलब वरासतके लिये संकेत अर्थसे करना योग्य होगा ।
दफा ५९३ तीन क़िस्मके वारिस जायदाद पाते हैं
मिताक्षराला के अनुसार तीन क़िस्मके वारिस माने गये हैं जो जाय दाद पानेके अधिकार हैं: ( १ ) सपिण्ड (२) समानोदक ( ३ ) बन्धु । यह सब यथाक्रम जायदाद पाते हैं यानी सबसे पहिले सपिण्ड जायदाद पायेगा और उसके बाद समानोदक, उसके पश्चात् बन्धु पायेगा । अर्थात् जब सपिण्ड में कोई न हो तब समानोदक जायदाद पाते हैं और जब समानोदकोंमें कोई न हो तब बन्धु अधिकारी होते हैं ।
दफा ५९४ सपिण्ड
मिताक्षरालों के अनुसार एक आदमी के सपिएड ५७ होते हैं। नीचे दफा ५६५ का नक्शा देखिये
स्त्रीविवाह होने से सपिण्ड में दाखिल हो जाती है। मगर लड़कीका लड़का गोत्रज सपिएड नहीं है; वह भिन्न गोत्रज सपिण्ड है । उत्तराधिकारके कामके लिये वह गोत्रज सपिण्डों के साथ रखा गया है ।