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दफा ५५४-५५५
न बट सकने वाली जायदाद
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पूर्वके क़ब्ज़ेदारका गैर जमानती कर्ज--प्रतापचन्द्रदेव बनाम जगदीश चन्द्रदेव A. 1. R. 1925 Cal. 116.
खान्दानी रवाज या किसी अन्य प्रकारसे कब्ज़ा न होनेकी सुरतमें हनीयत नाकाबिल तकसीम इन्तनालके योग्य है-प्रतापचन्द्र देव बनाम जग*दीशचन्द्र देव A. I. R. 1925 Cal. 116.
__ बचत-बचत द्वारा हासिल की हुई जायदाद कब्ज़ेदारकी अलाहिदा जायदाद है--हरिहरप्रसादसिंह बनाम केशवप्रसादासंह A.I.R.1925 Pat.68.
तीस वर्षके बन्दोबस्तके पहिले प्रामगांवकी ज़मीदारी बतौर राज्यके थी और इसीलिये नाकाबिल तक़सीम और एकही उत्तराधिकारके शासनके अधीन थी, तथा खान्दानके दूसरे मौजूदा सदस्य वाजिब परवरिशके और आमदनीके किसी विशेष हिस्सेके पानेके अधिकारी थे। यह ठीक उसी तरह की रियासत थी, जैसी कि सरकारने तीस वर्षके बन्दोबस्तमें ज़मीदारोंको दिया था। इसके अतिरिक्त उस वक्त तक आमगांव खान्दानमें एक रवाज हो गया था कि रियासतपर उसी प्रकार कब्ज़ा रहना चाहिये और उन्हीं शौकी पाबन्दी होनी चाहिये । तीस वर्षके बन्दोबस्तमें या उसके पश्चात् उस ग्रांटकी सूरतमें या खान्दानी रवाजके जायज़ होने में कोई असर न पड़ा था । अतएव ज़मीदारी नाकाबिल तकसीम करार दीगई -मल्हारराव बनाम मार्तण्डराव 84 I. C. 654; A. I. R. 1923 Nag.201. दफा ५५५ स्त्रियोंका वारिस होना
यदि कोई खास रवाज न हो तो मिताक्षराला से शासित होनेवाली न बट सकने वाली मौरूसी जायदादकी वारिस स्त्रियां नहीं हो सकतीं, मगर शर्त यह है कि वह जायदाद पिछले पूरे मालिककी खुद प्राप्तकी हुई न हो, और अगर पिछले मालिकके कोई पुरुष वारिसही नहीं हो तो स्त्रियां वारिस हो सकती हैं। तेखो-हिरन्नाथ कुंवर बनाम रामनरायनसिंह 9 B. L. R. 274; 17 W. R. C. R. 316.
___ जबकि न बट सकनेवाली जायदाद ऐती जायदाद हो जो अलग खुद कमाई गयी हो तो उस जायदादेसे वही नियम लागू होता है जो अलग कमाई हुई जायदादके लिये नियत है (देखो दफा ४१८ से ४२३ ) और स्त्रियां उसी प्रकार उस जायदादकी वारिस हो सकती हैं जैसे कि वे बटवारा हो सकने वाली जायदादकी होती-देखो, जहांपर गवर्नमेन्टने कोई जायदाद किसी कुटुम्बको इनामके तौरपर दी हो-रामनन्दनसिंह बनाम जानकीकुंवर 29 I. A. 178; 29 Cal. 828; 7 C. W. N. 57.
कटम्मानाचियर बनाम राजा शिवगंगासन 9 M. 1. A. 5 43; 2 W. R. P.C. 31. वाले मुकदमे में यह मानागया कि जबतक कि कोई खास रवाज
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