________________
दफा ५८४ - ५६६ ]
मर्दोंका उत्तराधिकार
शाखा देखिये - मालिकसे लेकर सातवीं पीढ़ीमें सपिण्ड समाप्त हो जाता है । 'पु' से मतलब पुत्र है, यानी नं० ४ का पुत्र ५ और नं० ५ का पुत्र ६, एवं नं०६ का पुत्र नं० ७ है । मालिक को हर शाखा में एक पीढ़ी मान कर शामिल करना चाहिये ।
६८५
सपिएड - सपिण्डों में सात पीढ़ी तक पूर्ण रक्त सम्बन्धको अर्द्ध रक्त सम्बन्धपर तरजीह दी जाती है जब वे दूसरी तमाम सूरतोंमें समान हों। सात पीढ़ीके पश्चात् पूर्ण रक्त और अर्द्ध रक्तमें कोई अन्तर नहीं माना जाता आत्माराम बनाम पाण्डू 87 I. C. 178.
दफा ५८५ पिण्डदान और जलदान के
सपिण्ड
पिण्डदान और जलदान हर आदमी अपने बाप, दादा, और परदादाको करता है, एवं नाना, परनाना तथा नगड़ नाना ( परनानाका बाप ) को करता है, अर्थात् ऊपरकी शाखा में पितृ पक्षमें तीन तथा मातृ पक्षमें तीन पीढ़ियों तक पिण्ड और पानी देता है । इसी तरहसे हर आदमी अपने लड़के, पोते, परपोते से पिण्ड और पानी पाता है। ऊपरकी शाखा में तीन और नीचेकी शाखामें तीन तथा उस आदमी को मिला कर सात पीढ़ी हो जाती हैं और दोनों शाखाओंका वह बाराबरका सपिएड होता है । यह इस लिये सपिण्ड है कि ऊपरकी शाखामें तीन पीढ़ियोंको वह पिण्ड और पानी देता है। इसी तरहसे नीचेकी शाखामें तीन पीढ़ीसे वह पिण्ड और पानी लेता है । वह ऊपर और नीचेकी दोनों शाखाओंको जोड़ता है। अतएव यह सात पीढ़ियों का सपिण्ड है। तथा इनमेंसे एक दूसरेके सपिण्ड हैं। यह बात एक मुकदमें में मानी गयी है; देखो - गुरू बनाम अनन्द 6 BL. R 39, S. C. 13 Suth ( F. B. ) 49; अमृत बनाम लच्छमीनरायन 2BLR. ( FB ) 34; S. C. 10 Suth (F. B.) 76.
दफा ५८६ दोनों सपिण्डोंमें फरक्क नहीं है
ऊपर कहे हुए सात दर्जेके और तीन दर्जेके दोनों सपिण्डों में कुछ फरफ़ नहीं है । सात दर्जेके सपिण्डकी अपेक्षा तीन दर्जे के सपिण्ड निकटस्थ हैं, तीन दर्जे के सपिण्डका काम उत्तराधिकार और श्राद्ध तर्पण में आता है, मगर साठ दर्जे के सपिण्डों का काम उत्तराधिकारमें और सम्बन्धके मिलानेमें आता है । सात दर्जेवाले सपिण्डके अन्दर तीन दर्जे वाले सपिण्ड हैं ।
सपिण्ड शब्दका अर्थ हम बता चुके हैं कि जो एकही पिण्डसे बने हों अथवा एक शरीर के अंश पाये जाते हों वह सब मिल कर एक दूसरेके सपिण्ड होते हैं देखो दफा ५७६