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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
बाकी वारिस इस तरहपर नहीं लेते । अर्थात् जिस उत्तराधिकारमें सरवाइवरशिप हक़ शामिल नहीं होगा तो उस वारिसके मरनेके बाद जायदाद उसके वारिसको जायेगी। .. . उदाहरण -एक हिन्दु, अमृत और विजय नामक दो भाई छोड़कर मरगया। दोनों भाई उसकी छोड़ी हुई जायदादको इकट्ठा लेंगे। ऐसा मानो कि अमृत एक विधवा छोड़कर मरगया तो उसकी विधवा बतौर वारिसके पतिकी छोड़ी हुई जादाद लेगी, उसके भाई विजयको नहीं मिलेगी। यही कायदा चाचा और भतीजोंके साथ लागू होगा तथा और दूसरे वारिसोंके साथ भी यही कायदा माना जायगा।
- (२) मर्दोका उत्तराधिकार मिताक्षरालॉके अनुसार
दफा ५७३ स्कूलोंके सबबसे उत्तराधिकार एकमां नहीं है.....
पहिले वताचुके हैं कि हिन्दुस्थानभरमें दो बड़े स्कूलोंकाप्रभुत्व मानागया है। स्कूलका अर्थ धर्मशास्त्र है ( देखो प्रकरण १) मिताक्षरा और दायभाग यह दो बड़े स्कूल हैं। दायभागसे मिताक्षरा स्कूल अधिक बड़ा है; क्योंकि दायभाग सिर्फ बंगालमें माना जाता है और मिताक्षरा स्कूल बंगालको छोड़ कर बाकी समस्त भारतमें माना जाता है। उत्तराधिकारके लिये जो कुछ कि कायदे मिताक्षरामें लिखे गये हैं. वह बनारस, मिथिला, बंबई और मदरास स्कूलमें माने जाते हैं, क्योंकि यह सब मिताक्षरा स्कूलके टुकड़े हैं, मगर जो जो कायदे इन प्रांतोंमें उत्तराधिकारके बारेमें प्रचलित होरहे हैं वह सब एकही तरहपर नहीं हैं, यानी कहीं कहीं उनमें भेद पड़गया है। यह भेद इसलिये पड़गया कि मिताक्षराके साथसाथ दूसरे ग्रन्थभी कहीं कहीं मान लियेगये हैं।
बनारस, और मिथिला स्कूलमें मिताक्षराका प्रभुत्व पूरा पूरा माना गया है। क्योंकि इन दोनों स्कूलोंमें सिर्फ पांच औरतें वारिस मानी गयी हैं यानी (१) विधवा (२) लड़की (३) मा (४) दादी (५) परदादी। इस सिद्धांतपर कि कोई भी औरत जो मिताक्षरामें वारिस नहीं बताई गयी उसे इन दो स्कूलों में वारिस नहीं माना गया । यद्यपि बंगालमें भी पांचही औरते वारिस बताई गयी हैं मगर वहांपर दायभागका प्रभुत्व है। - बंबई और मदरास स्कूलमें भी मिताक्षरामें कही हुई पांच औरतें वारिस मानीगयी है लेकिन बंबई और मदरास स्कूल, इनके अलावा कुछ थोडीसी दूसरी