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उत्तराधिकार
[नर्वा प्रकरण
जगह मिताक्षरास्कूलके अन्दर ऊपरका कायदा लागू होगा । बंबई और मदरास प्रांतमें इसलिये नहीं होगा कि वहांपर लड़किये पूरे अधिकारके साथ बापकी जायदाद पाती हैं देखो-विथप्पा बनाम सावित्री ( 1910 ) 34 Bom. 510.
नोट-ऊपर बताये हुए चार क्रिस्मके वारिस 'सरवाइवरशिप' के हकके साथ उत्तराधिकारमें भायदाद पाते हैं 'सरवाइवरशिप' का विशेष विवरण देखो ( दफा ५५८); चार किस्म के वारिस यानी, (बेटे-पोते-परपोते) नेवासा, विधवाएं, और लड़कियां,इनको छोड़कर बाकी सब रिश्तेदार उत्तराधिकारकी नायदादको बिना 'सरवाइवरशिप' के हकके लेते हैं अर्थात् उनमें ऐसा नहीं होता कि मुश्तरका जायदाद के हिस्सेदारों के मर जानेके जो बाकी रहता जाय उन्हीं में जायदाद चली जाय । बल्कि उनके वारिसोको जायदाद मिल जाती है । . उदाहरण-(१) एक हिन्दू जिसके पास अलहदा जायदाद थी अपने दो लड़के नल, और नील, को छोड़कर मरगया । पश्चात् नल, अपनी विधवा विदुषीको छोड़कर मरगया। मिताक्षरास्कूलके अनुसार नल और नील इकट्ठे सरवाइवरशिप ( देखो दफा ५५८); के हकके साथ उत्तराधिकारी थे इसलिये अगर नल जायदादका बिना बटवारा किये मरजाय तो सरवाइवरशिप (देखो दफा ५५८ ); केहक़के अनुसार उसका हिस्सा उसके भाई नील को मिलजायगा उसकी विधवा विदुषीको नहीं मिलेगा। लेकिन अगर नल और नीलके बीच में उस जायदादका बटवारा हो गया था तो उसका बटा हुआ हिस्सा उसकी धारिस विधवाको मिलेगा यानी विदुषीको मिलेगा । ऐसा मानोकि नल और नील ने बटवारा नहीं किया और नल एक बेटा, या पोता, या परपोता, छोड़कर मरा है तो अब नलका बिना बटा हुआ हिस्सा उसके भाई नीलको नहीं मिलेगा बलि उसके लड़के या पोते या परपोतेको मिल जायगा । इस जगहपर यह सिद्धांत लागू होगा कि लड़के, पोते, परपोतेका सरवाइवरशिपका हक बमुकाविले भाईके ज्यादा होता है ( देखो दफा ४०१)
(२) एक हिन्दू दो 'नेवासा' यानी लड़कीके लड़के, छोड़कर मरगया। जिनके नाम हैं महेश और गणेश । यह दोनों मुश्तरका खानदानमें रहते हैं। दोनों नेवासे नानाकी जायदाद काबिज़ मुश्तरक यानी सरवाइवरशिप (देखो दफा ५५८); के हनके साथ लेंगे। महेश अपनी विधवाको छोड़कर मरगया। अब जायदादमेंका वह हिस्सा जिसपर महेश सरवाइवरशिप (देखो दफा ५५८) के हक़के साथ काबिज़ था उसकी विधवाको नहीं मिलेगा, बल्कि उसके भाई गणेशको मिलेगा। अगर दोनों नेवासे मुश्तरका खानदानमें रहते न होते तो सरवाइवरशिपका हक लागू नहीं पड़ता और उस सूरतमें महेशके मरनेपर उसकी विधवाको बतौर वारिसके उसकी जायदाद मिल जाती।
(३.) एक हिन्दू अपनी दो विधवाएं चन्द्रमुखी, और सावित्रीको छोड़ कर मरगया। दोनों विधवाएं 'सरवाइवरशिप' ( देखो दफा ५५८); के हक्रके साथ इकट्ठी वारिस होंगी और चन्द्रमुखीके मरनेपर उसका अविभाजित हिस्सा