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रफा ५७१-५७२]
साधारण नियम
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सावित्रीको मिलेगा । यही सूरत तब होगी जब सावित्री पहिले मरजाय तो उसका हिस्सा चन्द्रमुखीको मिलेगा।
(.) एक हिन्दू दो लड़कियां प्रमदा और प्रफुल्लको छोड़कर मरगया। दोनों लड़कियां बापकी जायदादपर' सरवाइवरशिप' के हकके साथ वारिस होंगी। प्रमदाके मरनेपर उसका जायदादमेका अविभाजित हिस्सा प्रफुल्लको मिलेगा और अगर प्रफुल्ल पहिले मरजायगी तो उसका हिस्सा प्रमदाको मिल जायगा। अब देखिये इस विषयमें बंबई प्रांतमें क्या फरकपड़ता है। बंबई प्रांतमें प्रमदा और प्रफुल्ल जायदादको अलहदा अलहदा लेंगी और यहांपर 'सरवाइवर शिप' का हक नहीं होता इसलिये प्रमदाके मरनेपर उसका हिस्सा उसके पारिसको चलाजायगा, यानी अगर प्रमदा एक लड़की छोड़कर मरे तो उसका हिस्सा बजाय उसकी बहन प्रफुल्लके, उसकी वारिस लड़कीको मिलेगा। दफा ५७१ दायभाग स्कूल में सरवाइवरशिप दो बारिसोंमें होताहै . दायभागस्कूलके अनुसार 'सरवाइवरशिप' दोवारिसोंमें होता है,विधवा और लड़कियोंमें-विधवा और लड़कियां जायदाद उत्तराधिकारमें काबिज़ मुश्तरकसरवाइवरशिपके हलके साथ लेती हैं। इनदो वारिसोंको छोड़कर बाकी जितने वारिस इस स्कूलके अनुसार जायदाद लेते हैं वह सब अलहदा अलहदा लेते हैं उनमें 'सरवाइवरशिप' का हक नहीं रहता। - उदाहरण-एक हिन्दू जिसके पास अलहदा जायदाद थी दो लड़के जय
और विजय को छोड़कर मरगया। जय अपनी विधवा गंगाको छोड़कर मरा। इस स्कूलके अनुसार जय और विजय दोनों भाई अपने बापके काबिज़ शरीक उत्तराधिकारी थे यानी सरवाइवरशिपका हक नहीं था। इसलिये जयके मरनेपर जयकी वारिस उसकी विधवा गंगा होगई और जयकी जायदादमेंका उसका हिस्सा गंगाको मिला। विजयको नहीं मिलेगा। मिताक्षरा स्कूलके अनुसार विधवाको नहीं मिलेगा (देखो ५७४-१)
नोट-इस कितावको दफा ५७४-३, ४ में जो सूरतें उन उदाहरणोंमें दी गयी है वही दायभाग स्कूलमें भी मानी गयी हैं। दफा ५७२ किन वारिसोंमें सरवाइवरशिप नहीं लागू होता
ऊपर कही हुई दफा ५७०, ५७१ केसिवाय दोनों स्कूलोंके अन्दर सरवाइवरशिप दूसरे वारिसोंके उत्तराधिकारके हकके साथ नहीं लागू होता। अर्थात् चार वारिस जो इस किताबकी दफा ५७० में बताये गये हैं मिताक्षरा स्कूल के अनुसार । और दो वारिस जो इस किताबकी दफा ५७१ में बताये गये हैं वायभाग स्कूलके अनुसार, सरवाइवरशिपके हकके साथ जायदाद लेते हैं।