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दफा ५७३-५७४]
मर्दोका उत्तराधिकार
औरतोंको भी वारिस मानता है (देखो दफा ६४०६६४१)बंबई स्कूल में, मदरास स्कूलसे भी अधिक औरतें वारिस मानी गयी हैं।
नतीजा यह है कि उत्तराधिकारकाक्रम जैसा कि मिताक्षरामें लिखा हुआ है बिल्कुल उसी तरहसे बंबई,गुजरात और उत्तरीय कोकनमें नहीं मानाजाता। कारण यह है कि इन जगहोंपर नीलकण्ठ भट्टाचार्य्यके बनये हुए ग्रन्थ, व्यवहार मयूखकी प्रधानता थोड़ेसे विषयोंमें जहां कि मिताक्षरासे वह भिन्न है मानली गयी है। " दायभाग और मिताक्षराके उत्तराधिकार-दायभाग और मिताक्षरा एक दूसरेसे बिल्कुल पृथक हैं । दायभाग की स्कीम मिताक्षरा की स्कीम से बिल्कुल अलाहदा है और कुछ अंश तक तो वह उसके विपरीत है, और जहां तक कानून उत्तराधिकारका सम्बन्ध है एकका मेल दूसरेके साथ नहीं किया जा सकता । शम्भूचन्द दे बनाम कार्तिकचन्द दे A. I. R. 1927 Cal. 11. माताके, पिताके पिताके पिताकी पुत्रीके पुत्रकापुत्र,दायभागके अनुसार वारिस नहीं होता-शम्भूचन्द दे बनाम कार्तिकचन्द दे A. I.R. 1927 Cal. 11. .
कदवा कुनबी-अहमदाबाद के कदवा कुनबियोंमें यह रवाज है कि यदि कोई विवाहिता किन्तु निस्सन्तान स्त्री अपने पिताकी जायदाद उत्तराधिकारमें प्राप्त करे तो उसकी मृत्युके पश्चात् उस जायदादका उत्तराधिकार उसके पति या उसके सम्बन्धियों के वजाय उसके पिताके सम्बन्धियोंपर जाता है-रतिलाल नाथलाल बनाम मोतीलाल सङ्कलचन्द 27 Bom. L. R. 880; 88 I.C. 891; A. I. R. 1925 Bom. 380.
वरासत-पाचमें पिता द्वारा स्वयं उपार्जित जायदादका उत्तराधिकार हिसार जिलेके अग्रवाल बनियों में यह रवाज नहीं है कि पिता द्वारा उपार्जित जायदादके उत्तराधिकारमें पुत्रीको उसके वंशजोंके मुकाबिलेमें वारिस होनेसे बंचित रक्खा जाय-शिवलाल बनाम हुकुमचन्द A.I.R. 1927 1a. 47.. ... तकसीम शुदा साझेदारकी वरासत-जब कि कोई खानदान पहिलेही बटा हुआ होता है, तो वारिस जायदादपर काबिज़ शरीक हीते हैं (Tenant in Common ) न कि काबिज़ मुश्तर्क (Joint Tenant )-जादवभाई बनाम मुल्तानचन्द्र 27 Bom. L. R. 426387 I. C. 936; A. I. R.. 1925 Bom. 350. दफा ५७४ मिताक्षरालॉके अनुसार जायदाद किसके पास जायगी?
मिताक्षराला के अनुसार किसी मर्द हिन्दूके मरनेपर उसकी जायदाद किसके पास जायगी इस बातके निश्चय करनेके लिये नीचे लिखी हुई बातोंको ध्यानमें रखना चाहिये-.