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उत्तराधिकार
[नवां प्रकरण
ब्रह्मदेवके वारिस, अगर उसकी जायदाद तक़सीम कराना चाहें तो जायदाद पहिले तीन बराबर हिस्सोंमें बाटी जायगी। उसमेंसे एक हिस्सा गणेशको मिलेगा, एक हिस्से में शंभू और शिवको हिस्सा मिलेगा, और एक हिस्लेमें अज अमृत मुकुन्दको हिस्सा मिलेगा। यानी गणेश अपने बापकी, शंभू और शिव अपने दादाकी, अज, अमृत, मुकुन्द अपने परदादाकी जायदाद का भाग पायेंगे और उस भागमें सब लड़के बराबरके हिस्सेदार होंगे, एक हिस्सा जायदादका गणेशको मिलेगा जिसमें वह अकेला मालिक है और एक हिस्सा जो शम्भू और शिवको मिलेगा उसमे यह दोनों बराबरके हिस्सेदार होगें एवं अज, अमृत, मुकुन्द अपने परदादाके हिस्से में बराबरके हिस्सेदार होंगे। अगर गणेशके एक लड़का होता तो दोनों मिलकर तिहाई हिस्सा लेते और उस लड़केकी मौरूसी जायदाद गणेशके हाथमें होती जिसके ऊपर लड़केका हक उसकी पैदाइशसे होजाता। . तीसरा उदाहरण- . . ब्रह्मदेव ... .
लड़की+
( भाई ) अमृत
सुरेश+
गणश
+यह निशान मृत पुरुषोंका है। ब्रह्मदेव हिन्दू है और उसके पास बिला शिरकतकी जायदाद है । ब्रह्मदेव भरा और उसने अपने नवासेके लड़के गणेश, को और भाई अमृत, को छोड़ा सुरेश जो ब्रह्मदेवका नवासा यानी दौहित्र होता है वह ब्रह्मदेवके मरनेसे पहिले मर गया था और लड़की भी मर चुकी थी। अब देखिये हिन्दूलाँके अनुसार ब्रह्मदेवकी जायदाद उसका भाई अमृत पायेगा गणेश नहीं पायेगा अगर सुरेश जीता होता जब कि ब्रह्मदेव मरा था तो अमृतसे पहिले वह जायदाद पाता क्योंकि वह नवासा होने की वजहसे भाईके पहिले जायदाद पाता है। मगर वह ब्रह्मदेवसे पहिले मर गया इस सबबसे उसको जायदाद प्राप्त नहीं हुई थी। यहां पर गणेश अपने बाप सुरेशके स्थानापन्न होकर उसके हकको नहीं ले सकता और न उसके द्वारा जायदादका मालिक बन सकता है। हिन्दूलॉके अनुसार ठीक वारिस वही आदमी है जो पिछले मालिक के मरनेके समय सबसे नज़दीकी वारिस होता है और कोई भी आदमी किसी ऐसे दूसरे आदमीके द्वारा जायदाद पानेका हक़दार नहीं बन सकता जिसने कि खुदही जायदाद नहीं पायी । यही सिद्धांत यहांपर लागू किया है क्योंकि सुरेशकी ज़िंदगी में ब्रह्मदेवकी जायदाद उसे नहीं मिली थी, इसी सबबसे गणेशका हक़ मारा गया।