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दफा ५५६-५६१ ]
साधारण नियम
रहती है और उस जायदाद में किसी दूसरेका हिस्सा मुश्तरक नहीं रहता तो उस आखिरी मर्द मालिकके मरनेके बाद उसकी जायदाद जिस आदमी या औरतको पहुंचती है वह मरे हुये मालिकका उत्तराधिकारी होता है । यानी सबसे आखिरी मालिकके पास जो जायदाद उसके क़ब्ज़े में सबसे अलहदा रही हो सिर्फ उसीपर वरासतका क़ानून लागू पड़ेगा ।
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दफा ५६० वरासत दो तरह से निश्चित की जाती है
इस किताब के प्रथम प्रकरणमें स्कूलोंका विषय बयान किया गया है । उसमें दो बड़े स्कूल हैं । एक मिताक्षरा स्कूल और दूसरा दायभाग स्कूल | दायभाग स्कूल सिर्फ बङ्गाल में माना जाता है और बाक़ी सब जगहों में मिताक्षरा स्कूलका प्रभुत्व है । इन्हीं स्कूलोंके अनुसार समस्त हिन्दुस्थानमें दो तरहकी वरासतका होना निश्चित किया गया है- - एक मिताक्षरा स्कूल के अनुसार और दूसरा दायभाग स्कूलके अनुसार । इन दोनों क़ायदोंमें फरक यह है कि मिताक्षरा स्कूल खूनके रिश्तेसे वरासत क़ायम करता है और दायभाग स्कूल धार्मिक कृत्योंके, यानी मज़हबी रस्मातके सम्बन्धसे इस तरहपर दोनों स्कूलोंके सिद्धान्त आपसमें विरुद्ध हैं । इसी सबबसे वरासत दो तरह से निश्चित की जाती है ।
स्वयं उपार्जित जायदादके लिये पूर्ण रुधिर और अर्द्ध रुधिरका सिद्धान्त माना जायगा - आत्माराम बनाम पोडू A. I. R. 1926 Nag. 154.
तरीक़ा वरासत अगर क़ानूनके खिलाफ हो तो क़ानूनके खिलाफ वरासतका तरीक़ा नहीं माना जा सकता - हरबक्ससिंह बनाम डालबहादुर 47 All. 186; 88 I. C. 255; A.. I. R. 1925 All. 155.
मिताक्षरा स्कूल के अनुसार वरासत पानेका हक़दार, परिवारकी रिश्तेदारीसे निश्चित किया जायगा; देखो -- लल्लूभाई बनाम काशीबाई 5 Bom. 110, 121; 7 I. A. 212, 234.
दायभाग स्कूल के अनुसार वरासत पानेका हक़दार, वह माना गया है. जो मरे हुये आदमीको धार्मिक कृत्य द्वारा लाभ पहुंचानेका ज्यादा अधिकारी हो; देखो - जितेन्द्रमोहन बनाम गजेन्द्रमोहन 9 B. L. R 377, 394. दफा ५६१ मिताक्षरालॉके अनुसार जायदाद कैसे पहुंचती है
मिताक्षरालों के अनुसार जब किसीको जायदाद मिलती है तो वह दो सूरतों में से कोई एक होती है । मिताक्षरालॉ में जायदाद दो सूरतोंसे पहुंसूचना माना गया है- - एक तो 'सक्सेशन' और दूसरा 'सरवाइवरशिप' । 'सक्सेशन' का अर्थ है सिलसिला, जानशीनी, अनुक्रम, परंपरा, आनुपूर्व, उत्तराधिकारिता, दायभाग । और 'सरवाइवरशिप' का अर्थ है कि - हिन्दू परिवार
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