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दफा ३६२-३६३]
नाबालिगी और वलायत
यदि किसी नाबालिरा मुद्दालेह के खिलाफ़ डिकरी इसलिये होगई हो कि वकील, वली की अनुपस्थिति के कारण गवाहोंकी गैर हाज़िरीका सबब बताने में असमर्थ रहा हो और इस वजह से तारीख न बढ़वा सका हो, तो वह डिकरी मंसूख करदी जानी चाहिये । दादा साहब बनाम के० गजराजसिंह 85 I. C. 258; A. I. R. 1925, Mad. 204;47 M. L. J 928.
नाबालिग और डिकरी-जब किसी नाबालिग के खिलाफ डिकरी की कार्यवाही में उसकी माता ने भाग लिया और नाबालिग के हक़ में कुछ भी हानि नहीं होने दिया। तय हुआ कि यद्यपि माता अदालत द्वारा नाबालिग की वली न नियत कीगई थी किन्तु फिर भी नाबालिग का उसके द्वारा प्रति. निधित्व बिल्कुल ठीक था । रनमापा गोरञ्जनी बनाम बेटी महवेर्ट A. I. R 1927 Cal. 2073 दफा ३६३ वलीकी ज़िम्मेदारी
चाहे जिस तरहपर वली नियत किया गयाहो मगर वह उस नुकसानके पूरा करदेनेके लिये ज़ाती तौरपर ज़िम्मेदार है जो उसकी दगाबाज़ी, चालाकी, या गैरकानूनी तरीकेसे हुआ हो । मगर वली अज्ञानके करजेका उतनेसे ज्यादा ज़िम्मेहार नहीं है जितनी कि जायदाद उसने अज्ञानसे पाई हो।
जब अज्ञानका वली कोई अपराध करे तो अज्ञान. उसकी गलतीका पाबन्द नहीं होगा। वली अपनी गलती का ज़ाती तौरपर ज़िम्मेदार होगा। इसी तरहपर जब अविभक्त परिवारके अज्ञानकी जायदाद में वलीने कुछ अपराध किया हो तो अज्ञानकी जायदाद ज़िम्मेदार नहीं होगी; देखो--सोनू विश्राम बनाम ढुं, 6 Bom. L. R. 122; 28 Rom. 330.
पंचायत--यदि नाबालिग पर पाबन्दी हो--वली द्वारा दिये हुये किसी पंचायतके हवालेकी पाबन्दी नाबालिगपर उस सूरतमें जबकि वह प्रमाण युक्त और युक्त पूर्ण हो लाज़िमी होगी। नाबालिग उस्ट हवालेको इस बातका सबूत देकर कि वह उसके फायदे के लिये न किया गया था मंसून करा सकता है। देखो--पुन्नूस्वामी बनाम वीरामुथ 3 Rang. 452..
यदि वली किसी कानूनी मुकदमे को, बिना उसके कानूनी पहलूपर विचार किये हुये ही दायर करे तो यह उसकी गफलत सरीह विशेष असावधानी नहीं है। देखो-सुबय्या पण्डारम बनाम अरुन चला पण्डारम A. I. R. 1925. Mad. 379.
नोट-अपराधसे मतलब है ( खियानत ) और वह कसूर जो उसकी गलतीसे या वदनीयती आदिसे पैदा हुये हो । वली किन किन बातोंका जिम्मेदार है इस विषयका पूरा विवरण गार्जियन एन्ड वार्ड्स ऐक्ट नम्बर ८ सन १८९० ई . की दफा २०, २४, २७ में देखो । यह दफाय इस किताव की दफा ३६७, ३६९, ३७० में देखो और पूरा कानून इस प्रकरण के अंतमें देखा ।