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पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्ज़ा
[ सातवां प्रकरण
भी जिम्मेदार होगी । विष्णुस्मृतिमें कहा गया है कि बीस वर्ष तक लापता रहनेपर वह मरा हुआ माना जायगा, और देखो - कोलब्रुक डाइजेस्ट Vol. 1, P. 266. और देखो क़ानून शहादत एक्ट नं० १ सन १८७२ ई० की दफा १०७-१०८ इस किताबकी दफा ४६४.
प्रबद
पुत्रपर पाबन्दी नहीं --पिता द्वारा किये हुये इन्तक़ालकी पाबन्दी, पिता के जीवनकालमें, उस सूरतमें जब क़ानूनी आवश्यकता न साबित हो पुत्रके अधिकारपर नहीं होती । जब पुत्र द्वारा नालिश कीगयी और क़ानूनी ज़रू रतकी शहादत केवल दस्तावेज़ और उस आदमीके ज़रिये ही प्राप्त हुई जिसके इनमें इन्तक़ाल किया गया था। तय हुआ कि क़ानूनी ज़रूरत नहीं साबित हुई- --- नागप्पा बनाम चादेप्पा 2 Mags. L. J. 284.
दफा ४९४ जिन्दा है या मर गया
अब किसी मामलेमें ऐसा प्रश्न उठे कि अमुक आदमी ( या स्त्री ) मर गया या जीवित है और किस पक्षकारपर बार सुबूत है, इस विषयमें देखो कानून शहादत दूसरा एडीशन, छपा हुआ सम १६०२ ई० एक्ट नं० १ सन १८७२ ई० की दफा १०७ और १०८, उपरोक्त दफायें इस प्रकार हैं-
दफा १०७ - - ' जबकि यह प्रश्न उठे कि अमुक आदमी जीवित है या मर गया और यह साबित किया जाता हो कि वह तीस वर्षके अन्दर जीवित था तो बार सुबूत उस पक्षकार पर होगा जो उसका मर जाना बयान करता हो ।'
दफा १०८ - - ' बशर्ते कि जब, यह प्रश्न उठे कि अमुक आदमी जीवित है या मर गया, और यह साबित हो कि उसके जीवित रहनेका समाचार अगर वह आदमी जीवित होता तो स्वभावतः जिन लोगोंके पास आ सकता था सात वर्ष तक नहीं आया, तो बार सुबूत उस पक्षकारपर होगा जो कहता हो कि वह जीवित है ।'
दफा ४९५ पुत्रोंपर नालिश करनेकी मियाद
'कानून मियाद एक्ट नं० ६ सन १६०८ ई० श्रार्टिकल १२० के अनुसार पुत्रोंपर बापके क़र्जेका दावा करनेके लिये छः (६) वर्षकी मियाद मानी गयी है और यह मियाद उस समयसे शुरू होगी जबकि महाजनको क़र्ज़ेके दावा करनेका हक़ पैदा हुआ हो; देखो - महाराजसिंह बनाम बलवन्तसिंह 28 All 508; 23 All. 206; 16 Mad. 99; 17 Mad. 122.
ध्यान रखना चाहिये कि जब बापको क़र्जा देने वाले महाजनका हक़ पुत्रोंपर दावा करनेका वापकी जिन्दगीमें पैदा हो जाय तो बापके मर जाने से