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[ आठवां प्रकरण
देखो - - रामप्रसादसिंह बनाम लक्षपति कुंवर 30 I. A. 1; 30 Cal. 23-253; 7 C. W. N. 162; 5 Bom. L. R. 103.
ફ્ર
बटवारा
कुटुम्बके लोगोंने यदि कोई दस्तावेज़ लिखकर या कोई ऐसे काम करके दिखा दियाहो कि वे आपसमें बटवारा करके मुश्तरका खानदानकी स्थिति बदलना चाहते हैं तो इसीसे उनके बटवारेकी नीयत मानली जायगी देखो - दुर्गाप्रसाद बनाम कुन्दनकुंवर 1 I. A. 55; 13 B. L. R. 235-239; 30 Cal. 738-750; 7 C. W. N. 578; 21 W. R. C. R. 214; 30 I. A. 139-147.
कोपार्सनर लोग मोहकमे मामलेमें या लैन्ड रजिस्ट्रेशन एक्ट नं0 7 (B. C. ) 1876 के अनुसार जो कोई दरख्वास्त आदि दें और उनमें मुश्तका जायदाद के हिस्सोंमें अपने अपने भागकी तशरीह करें परन्तु बटवारेकी कोई नीयत ज़ाहिर न हो तो इससे मुश्तरका खान्दान बटा हुआ नहीं समझा जायगा हां अलगाव के विषयमें यह शहादत हो सकती है, देखो -- फुलझरी कुंवरका मामला 8 BL. R 38; 17 W. R. C. R. 102; 8. B. L. R. 396 का नोट 14 W. R. C. R. 31; 1 All. 437; 7 Cal. 369.
मोहकमे मालके कागज़ात में अलग अलग हिस्सा दिखाया गया हो तो इससे बटवारेकी नीयतका सुबूत नहीं होगा बल्कि अलगाव समझा जा सकता है, देखो - 10 All. 490.
जब कोपार्सनर आपसमें यह नीयत करलें कि वे जायदाद के हिस्सोंको अलग अलग भोगेंगे तो चाहे नाप जोखकर जायदादका बटवारा न भी हुआ हो और चाहे वे उन हिस्सोंको अलग अलग भोगने भी नहीं लगे हों तो भी यह मान लिया जायगा कि उन सबका बटवारा होगया, देखो - 11 Mad. I. A. 75-90; 8 W. R. P. C. 1; 30 I. A. 136; 30 Cal. 738; 13 M. I. A. 113; 21 W. R. C. R. 214; 17 I. A.194;18 Cal.157;12Cal.96.
छोटे भाई के भरण पोषणके लिये जो जायदाद आपसमें समझौता करके अलग करदी गयी हो वह बटवारे से अलग नहीं समझी जायगी, देखो - 20 Mad. 256. जायदाद के हिस्सोंको अलग अलग भोगनेकी नीयत करने के बाद यदि सब फ़रीक़ क़ानून के अनुसार फिर मुश्तरका रहने लगें तो जायदाद फिर मुश्तरका समझी जायगी इस सूरतके सिवाय और किसी सूरतमें उनका वह
लग जायदाद भोगनेका निश्चय नहीं बदल सकता यानी बटा हुआ खान्दान समझा जायगा । जब बटवारेका केवल इक़रारनामा ही लिखा गया हो तो उससे बटवारा होगया ऐसा नहीं समझा जायगा 4 Bom. 157.
कुक़ से पहले बटवारा - जो बटवारा अदालतकी कुर्कीसे पहले पितापुत्रके बीच होगया हो तो वह बटवारा इस वजेहसे नाजायज़ नहीं हो जायगा