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बटे कुटुम्बका सामिल होना
(७) आसामके वास्ते - रिजोल्यूशन नं० १ सन् १८८६ ई० की दफा ६६ - १२१ और दफा १५४.
दफा ५५०-५५२ ]
६५३
(८) पञ्जाबके वास्ते -एक्ट नं० १७ सन् १८८७ ई० की दफा ११२ से १३५ और दफा १५८.
(७) बटे हुए कुटुम्बियों का फिर शामिल शरीक होजाना
दफा ५५२ फिर शामिल हो जाना
मुश्तरका खान्दानके बटवारा करने वाले सब लोग या उसमें से कुछ फरीक़ बटवारा हो जानेके बाद फिर एकमें शरीकहो सकते हैं, और उनके इस तरहपर शामिल होने से फिर मुश्तरका खान्दान बन जा सकता है। उस खान्दानकी वही हैसियत होगी जो बटवारा करनेके पहले थी, देखो -- बकस लाडूराम बनाम रुखमाबाई 30 I. A. 130; 30 Cal. 725; 7 C. W. N. 642; 5 Bum. L. R. 469; 10 M. I. A. 403; 4 W. R. P. O. 11; 3 Bom. H. C. A. C. 69; 4 Bom. H. C. O. C. 150; 35 Cal. 721; 19 Cal 634; 5 W. R. C. R, 249; 33 Mad. 165.
--बाला
सिर्फ इकट्ठे रहने या एक साथ जायदादके भोगनेसे एकमें शामिल होना नहीं समझा जायगा बल्कि शामिल होने वाले सब कुटुम्बियोंका जायदादका मालिकाना हक़ फिर एक हो जाना चाहिये -- 37 Cal. 703; 7 W. R. C. R. 35; 5 Bom. L. R. 461.
बटे हुए कुटुम्बियों की सन्तान भी अगर चाहे तो फिर एकमें शामिल, हो सकती है परन्तु उन सन्तानों का एकमें शामिल होना हिन्दूलॉ के अभिप्राय के अन्दर नहीं है और न उनके एकमें शामिल होनेसे वरासतमें कुछ असर पड़ेगा--10 Cal. L. R. 161.
मिताक्षरा के अनुसार नीचे लिखे सिर्फ तीन प्रकारके कुटुम्बी ही फिर कमें शामिल हो सकते हैं। इस विषय में वृहस्पति कहते हैं कि-
विभक्तो यः पुनः पित्रा माता वैकत्र संस्थितः पितृव्येणाथवा प्रीत्या स तत्संसृष्ट उच्यते ।