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बटवारा
[आठवां प्रकरण
5 Bom 589, 595 में माना गया कि किसी कोपार्सनरको उसके खर्च के लिये पहले जो रुपया मिल चुका हो उसका हिसाब नहीं लिया जायगा।
जायदादके किसी हिस्सेको अपना मानकर किसी कोपार्सनरने अगर उसे बेच दिया हो तो जहां तक मुमकिन हो उतना हिस्सा खरीदारको दिया जाना चाहिये । अगर ऐसा मुमकिन न हो तो खरीदार उसी कोपार्सनर की जातसे हरजाना पानेका हकदार होगा, देखो--26 Mad. 690, 7:8, 719.
जब किसी कोपार्सनरने मुश्तरका जायदादके किसी खास हिस्सेपर अपना निजका रुपया लगाया हो या और. तरहसे उस हिस्सेकी तरक्की की हो तो उचित यही है कि वह हिस्सा उसीको दिया जाय । मगर शर्त यहहै कि वह उसका हिस्सा उसके उचित हिस्सेसे अधिक न हो । एक मुक़द्दमे में एक कोपार्सनर ने मुश्तरका खान्दानकी ज़मीनपर एल मकान अपने निजके रुपये से बनवा लिया था अदालतने यह फैसला किया कि प्रत्येक कोपार्सनर उस मकानमें तथा उस ज़मीनमें कि जिसपर वह मकान बनाया गया है हिस्सा पानेका हक़दार है, देखो-बिछोवा बाबा बनाम हरीवा वाव 6 Bom H. C. A.C54.
यद्यपि बटवारे की नालिश के पश्चात् खान्दानी मेनेजर द्वारा किसी प्रोनोटके नये करनेपर, मुश्तरका खान्दानके मेम्बरोंकी हैसियत असली कर्ज को जीवित रखने के लिये काफ़ी न हो, ताहम जब खान्दानी मेनेजर खान्दानी कर्ज को अदा करे, तो खान्दानके दूसरे मेम्बर न्यायानुसार वाध्य हैं कि वे उस कर्ज में भाग ले--विश्व शङ्कर नारायन अय्यर बनाम कासी अय्यर 21 L. W. 25; 86 I.C. 225; A. I. R. 1925 Mad. 453.
नोट-मुश्तरका खानदानमें, अलाहिंदगी यानी अलगाव और बटवारा इनका ठीकठीक निश्चय होना प्रत्येक मुकद्दमेकी शहादतपर निर्भर है । यदि बट जानेकी नीयत और उनके कामोंसे उस नीयतका सुबूत मिलता है तो ऐमी अलाहिदगी बटवारेका असर रखती है। इस तरहका अलगाव या बटवाराहो जानेसे मुश्तरका कुटुम्ब नहीं रहता चाहे कुछ जायदाद मुश्तरकाभी रह गयी हो । पीछे हरएक मेम्बर नये मुश्तरका खानदानका मूल पुरुष बन जाता है, सरवाइवरशिप टूट जाता है, उसकी जायदाद उत्तराधिकार के क्रम से चलती है।