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दफा ४६८]
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
समझा जाता हो, अतएव उसकी पाबन्दी उसके पुत्रों और प्रपौत्रों पर नहीं है। तद्यपि जब इस प्रकारके रेहननामेकी डिकरी हो जाय तो वे उसकी जिम्मेदारीसे तब तक नहीं बच सकते, जब तककि वे यह न साबित कर सके, कि रेहननामा किसी गैर कानूनी या गैर तहजीबी अभिप्रायके लिये किया गया था--नन्दलाल बनाम उमराई 93 I. C. 655 3 0. W. N. 359; A. I. R. 1926 Oudh. 321.
कर्ज--पिता द्वारा रेहननामा--जातीय जिम्मेदारी-संयुक्त खान्दान की जायदाद-पुत्रोंका हक़--यदि क़ाबिले नीलाम है--मुसम्मात महराजी बनाम राघोमन 89 I. C. 476.
___ कर्ज और पिता द्वारा दुरुपयोग-किसी हिन्दू पिताने किसी दूसरे की ओरसे कर्ज लिया और बादको उसका दुरुपयोग किया। किसी दूसरे व्यक्तिने रकमकी अदाईके लिये रेहननामा लिख दिया और उसकी मृत्युके पश्चात् उसके पुत्रोंपर उस रेहननामेकी बिनापर नालिश हुई। तय हुआ कि असली कर्जका लिया जाना फौजदारीका जुर्म न था, उसकी बिनापर केवल कर्ज सम्बन्धी दीवानीके नियमोंका उल्लंघन था। कर्ज इस किस्म का था, जिसके अदा करनेके लिये पुत्रोंपर धार्मिक (Pious) जिम्मेदारी थी। चूंकि कर्ज खान्दानके फ़ायदेके लिये न लिया गया था इसलिये रकमकी डिकरी दी जा सकती है न कि रेहननामेकी-रामेश्वरसिंह बहादुर बनाम दुर्गामन्धर 90 I. C. 454. दफा ४९८ पैतृक ऋण देना जायदादही पर निर्भर नहीं है
हिन्दू धर्म शास्त्रानुसार अपने बाप, दादा, और परदादाके कर्जेका अदा करना पुत्र, पौत्र, और प्रपौत्रका धार्मिक कर्तव्य कर्म माना गया है जिस तरह से कि अन्य धार्मिक कृत्योंके पूरा करनेकी जिम्मेदारी है उसी तरहपर पैतृक ऋणके चुका देनेकी मानी गयी है, देखो-याज्ञवल्क्य २-६२ और नारद १-३-४ कहते हैं
ऋणलेख्यकृतन्दयं पुरुषस्त्रिभिरेव च प्राधिस्तु भुज्यते तावद्यावत्तन्नप्रदीयते । याज्ञ. क्रमादव्याहृतं प्राप्त पुत्रैर्यनर्णमुद्धृतम् दद्यः पैतामहं पौत्रास्तचतुर्थानिवर्तते । नारद-वि०
वाज्ञवल्क्य कहते हैं कि किसी लिखतके द्वारा जो कर्जा लिया गया हो वह तीन पीढ़ी तक चुकाया जायगा और जो कर्जा जायदाद रेहन करके लिया