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बटवारा
आठवां- प्रकरण
:- यह बात स्मरण रखिये कि बटवारा हमेशा मुश्तरका जायदादमें होता है। मुश्तरका
बहुत भेद नहीं है जहां कहीं दोनों में
जायदाद मुश्तरका खान्दानमें होती है ( देखो प्रकरण ६ ); जो जायदाद मुश्तरका नहीं है उसमें बटवारा नहीं होता । बटवारे में मिताक्षरा और दायभागलों में मतभेद पड़ता है उसे उसी जगहपर स्पष्ट कर दिया गया है। वहां समझ लेना कि मिताक्षराला ही माना जाता है । जो लोग केवल भरण पोषण के पाने का अधिकार रखते हैं ( देखो दफा में नहीं होता । बटवारेका यह प्रकरण आठ भागों में विभक्त है; जैसे
जहां दायभागलों का उल्लेख नहीं है, जायदाद में अपना हिस्सा नहीं रखते ६५१ - ६६२ ); उनका हिस्सा बटवारे
( १ ) बटवारे के साधारण नियम दफा ५०३ - ५१२, ( २ ) स्त्रियोंका अधिकार दफा ५१३ — ५२०, ( ३ ) कोपार्सनरों के हिस्सों के निश्चित करनेका कायदा दफा ५२१ – ५२५, ( ४ ) - ५४०, ( ६ ) कुटुम्बियोंका फिर उत्तराधिकार दफा
बटवारेकी जायदाद दफा ५२६ – ५२७, ( ५ ) अलाहदगी और बटवारा दफा ५२८ बटवारे के कानूनकी कुछ जरूरी दफाएं दफा ५४१ – ५५१, ( ७ ) बटे हुए शामिल हो जाना दफा ५५२, (८) बटवारा न हो सकने वाली जायदाद का
५५३ - ५५७.
( १ ) बटवारे के साधारण नियम
दफा ५०३
बटवारा क्या है ?
हिन्दू धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि मुश्तरका खान्दान, बटवारा हो जानेसे जब सब लोग अलग अलग रहने लगते हैं तो धर्मकी वृद्धि होती है । इसका मतलब यह है कि अलग अलग रहनेसे सब लोग अलग अलग पञ्चयज्ञ करेंगे जिससे धर्म की बृद्धि होगी इस लिये बटवारा होना धर्म सङ्गत है । मनु कहते हैं कि
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