________________
६३२
बटवारा
[आठवां प्रकरण
दफा ५२७ जो जायदाद स्वाभाविक तरहपर नहीं बट सकती हो
इस विषयमें मनु कहते हैं किबस्त्रपत्रमलङ्कारं कृतानमुदकं स्त्रियः योगक्षेमं प्रचारंच न विभाज्यं प्रचक्षते । मनु ६-२१६
मिताक्षराने मनुके उपरोक्त क्लोक को उद्धृत करके कहा है कि कपड़े, बाहन जेबर, पका हुना अन्न, उदक ( कुंबा, बावड़ी, तालाब आदि) दासी. योगक्षेम और प्रचार ये विभाग करने योग बुद्धि मानोंने नहीं बताया । इस बचनकी पाबन्दी कहां तक बटवारेमें की जाती है ? नीचे देखो--
वस्त्र-कपड़ोंके बारेमें मिताक्षराने कहा है कि इस्तेमाली कपड़े जिस के जो हों वह उसके पास रहे और जो दूसरे कपड़े हैं वह बांट लिये जाय । मगर शर्त यह है कि जहांपर कपड़े टुकड़े किये बिना नहीं बट सकते हों, और टुकड़े करनेसे वह खराब या बेकार हो जा सकते हों तो ऐसा नहीं किया जायगा । वह किसी एक कोपार्सनरको देकर उसका बदला दूसरी चीज़में डाल दिया जायगा या नक़द कीमत उससे दिला दी जायगी।
पत्र-सवारी जैसे घोड़ा, पालकी, गाड़ी, रथ, मोटर आदि। ये जिसके इस्तेमालमें रहते हों उसीके पास रहने दिये जायें । मगर उसकी क़ीमतका स्याल करके सब हिस्सेदारोंमें उसका बदला या तो किसी दूसरी चीज़ या रुपयामें दिला दिया जाय । अगर कोई सवारी तिजारतके लिये खास है तो बह सामान्य वस्तुकी तरह समझी जायगी और उसकी कीमत सबको बांट दी जायगी।
अलङ्कार--जेवर, जिसके अङ्गपर हो वह उसी के पास रहने दिया जाय । यहांपर जेवरसे मतलब है जो साधारणत. इस्तेमाल किया जाता हो । अगर कोई ऐसा ज़ेवर है जो कभी कभी किसी खास समयमें काममें लाया जाता है वह सबको बांटा जायगा, यह बात मानली गयी है कि घरमें जो लोग होते हैं घह करीब करीब बराबर कीमतका गहना पहने रहते हैं।
कृतान्न--पका हुआ अन्न जैसे लड्डू, मिठाई, आदि । इनका बटवारा असभ्य है। माना गया है कि यह चीज़े रीज़ाना के खाने पीने के खर्चके लिये .बनाई जाती हैं इसलिये नहीं बांटना चाहिये, इनकी कीमत भी ज्यादा नहीं होती. भोज्य पदार्थका बटवारा सभ्य समाज में तुच्छ समझा जाता है। 'कृतान्न' शब्द से चावल, मूंग, तिल, यब, गेहूं आदिका भी बोध हो सकता है। यदि यह ज्यादाहों या इसका व्यापारही किया जाताहो तो बांटे जायेंगे।