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दफा ५२६ ]
बटवारेकी जायदाद
अहसानउल्ला बनाम काली किंकर कुर (1884 ) 10 Cal. 675. वाले मुकद्दमे में अदालत ने कहा है कि "बटवारेका सिद्धान्त यही है कि जो जायदाद उसके आंतरिक मूल्यको नष्ट किये बिना बांटी जा सकती हो वह अवश्य बांटी जाय किन्तु यदि बांटनेसे वह आंतरिक मूल्य नष्ट होता हो तब उसके हिस्सेके बराबर कोपार्सनरको रुपया दिया जायगा।"
(५) किस जायदादका बटवारा नहीं होता-जिस जायदादमें प्राचीन और न बदलनेवाले रवाजके अनुसार यह नियम हो कि समग्र जायदादपकही बारिसको मिले और वही उसको भोगे और वह बांटी न जाय तो वह बांटी न जा सकेगी-11 I. A. 1; 13 B. L. R. 165; 14 M. I. A. 570; 24 Mad. 562; 4 Bom. 494; 7 [L. A. 162. जिंस जायदादमें ऐसा रवाज हो वह कोपार्सनरी जायदाद नहीं है और इसलिये उसका बटवारा नहीं हो सकता _ अगर किसीने अहदनामा किया हो कि वह अमुक जायदादका बटवारा न करेंगे तो यह काम व्यर्थ है क्योंकि उसके पाबन्द दूसरे लोग या उनकी सन्तान भी नहीं होगी।
अगर कोई जायदाद सरकारसे इस शर्तके साथ मिली हो कि उसका बटवारा न हो सकेगा तो वह बांटी नहीं जा सकती। ऐसी जायदादका विचार सरकारी शापरसे और मामलेकी सब बातोंपरसे किया जायगा, देखो-- शंभुशिव ऐय्यर हिन्दूलॉ P. 461.
___ एक सदस्य द्वारा उपार्जित जायदाद दूस्टके लिये अलाहिदा होगी। दूसरेका अधिकार--जमनादास काशीदास बनाम दुष्यन्तप्रसाद A.. I. R. 1925 Oudh. b6.
बटवारा--केवल थोडीसी खानदानी ज़मीनके बटवारेकी नालिश नहीं हो सकती, यदि कोई खास परिस्थिति न हो-85 I.C. 503; A. I. R. 1925 Mad 333; 47 M. L.J. 908.
जो जायदाद विदेशी न्यायाधिकारमें हो--तत्सम्बन्धी नालिश-पारिवारिक जायदाद जो विदेशी न्यायाधिकारमें हों, हिस्सेको बराबर करनेके लिये शुमार नहीं की जा सकती--श्रीनिवास बनाम सुबरायप्पा 4 Mys.L.J.681.
यदि किसी मुश्तरका जायदादमें कई प्रकारकी जायदादें हों और उस मुश्तरका खानदानमें कई सदस्य हों, जिनके मध्य बटवारा होना हो, तो यह किसी सदस्यके लिये उचित न होगा कि किसी जायदादको किसी अन्य व्यक्ति के हकमें मुन्तकिल करदे और इस बातका आग्रह करे, कि वह खास जायदाद उसके खरीदारको मिले। चाहे यह खास बिक्री हो या बिक्रीका मुआहिदा हो किन्तु यह प्रश्न कि आया वह जायदाद खरीदारको मिलना चाहिये या नहीं, उस मामलेकी परिस्थिति पर निर्भर है-जम्मालमदक वेंकट रामप्पा बनाम राघवलू 21 L. W. 62; 45 I C. 1054; A. I. R. 1925 Mad. 492.