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दफा ५०१ ]
aruha क़ानूनी क़र्ज़े
जब जायदाद पुत्रोंके हाथमें आयी तब उस डिकरीका असर नहीं रहेगा, देखो - 32 B. 348; 10 Bom. L. R. 297.
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( ११ ) कोई कंट्राक्ट जो बापने किया हो उससे हिन्दूलॉ के अनुसार हमेशा की जिम्मेदारी नहीं पैदा होती यानी वह कंट्राक्ट पुत्रको पाबन्द नहीं कर सकता पुत्र सिर्फ बापके क़र्जेके देनेके जिम्मेदार हैं। बापके किये हुए हर एक कंट्राक्टसे पुत्र पाबन्द नहीं हो जाते और जब बापने कोई ऐसा कंट्राक्ट किया हो जिससे हमेशा के लिए रुपया देनेकी जिम्मेदारी पैदा होती हो तो जब उसकी जायदाद उसके प्रपौत्रके हाथमें आ जाबेगी तो उस कंट्राक्टका असर टूट जावेगा इसी तरहपर पुत्रोंके सम्बन्धमें भी लागू होगा, तथा पौत्रों से भी; देखो - 6 Bom. L. R. 642.
( १२ ) नीचेके मुक़द्दमेमें यह सूरत थी कि बाप खजाञ्ची था । उसने कुछ रुपया दगाबाजी से चुराया । अदालतने उस रुपपके वसूल करने की डिकरी Latur करदी, माना गया कि पुत्र डिकरीके जिम्मेदार नहीं हैं और यही सूरत उस समय भी होगी जब बापने कोई रुपया किसी अपराध करनेके लिये क़र्ज़ लिया हो; देखो - 27 M. 71; 6 All. 234; 24 Cal. 672.
(१३) बापने कुछ जायदाद चुराई और पीछे ईसाई होगया या दूसरे मज़हबमें चला गया पीछे अदालतने उतने रुपयेकी डिकरी बापपर की जितनी कीमत की जायदाद उसने चुराई थी, डिकरीके इजरामें जब मुश्तरका जायदाद सब कुर्क हुई तब पुत्रोंने अलग दावा दायर किया कि डिकरी खारिज करदी जाय । अदालतने कहा कि बापने बुरे कामोंके लिये जो क़र्जा लिया हो वह पुत्रोंसे नहीं दिलाया जा सकता : इसलिये कुल मुश्तरका जायदाद कुर्ती और नीलाम योग्य नहीं है; देखो - No. 128 of 1879 Civil.
( १४ ) ऐसे क़र्जे जैसे बापने किसीके नेक चलन रहने या शांति बनाये रखनेके लिये ज़मानतकी हो ( मुचलका आदि ) उनके देनेके लिये पुत्र ज़िम्मेदार नहीं हैं, देखो - 28 M. 377. इस केसमें कहा गया है कि बाप और पुत्र शामिल रहते हों और बापके मरनेपर वह जायदाद पुत्रोंके हाथमें आजाय तो उस जायदादपरसे बापके ऐसे सब क़ज़का बोझ हट जाता है जो बापने मुलका श्रादिकी तरहपर किये हों ।
गैर तहजीबी क़र्जके अन्दर किन किन बातोंका समावेश है, और ग़ैर तहजीबी क़र्ज किस प्रकार होता है-पिता द्वारा धनका दुरुपयोग -- फौजदारीके जुर्म की अदायगी, यदि श्रावश्यक हो - अपराधकी डिकरी --जगन्नाथ प्रसाद बनाम जुगुलकिशोर L. R. 6 All. 518; 89 1. C. 492 23A, L. J. 882; A. I. R. 1926 All. 89.