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[ छठवां प्रकरण
• लेकिन उस मुक़द्दमे में जो सिद्धान्त निश्चित हुये वह नीचे लिखे लोगों से भी लागू होते हैं ।
मुश्तरका खान्दान
( १ ) मुश्तरका खान्दानके उस मेनेजरसे जो नाबालिग कोपार्सनर की ओरसे काम कर रहा रो, देखो, सुरेन्द्रो बनाम नन्दन 21 W.
R. 196.
(२) उन विधवाओं से और उन महदूद हक़ रखने वाले वारिसोंसे जिन्हें उत्तराधिकार में जायदाद मिली हो
( ३ ) धर्म खातेकी जायदाद के मेनेजर से;
( ४ ) पागलोंकी जायदाद के मेनेजर से देखो, गौरीनाथ बनाम कलक्टर श्राफ मौनगिर 7 W. R.; कांतीचन्द बनाम विश्वेश्वर 25 Cal. 585.
उक्त हनुमान प्रसाद वाले मुक़द्दमे में प्रिवी कौंसिल के जजोंने कहाकि नाबालिग की जायदादमें क़र्ज़ेका बोझा डालनेके लिये मेनेजरका अधिकार हिन्दू लॉ के अनुसार सीमाबद्ध है, सिर्फ ज़रूरत के वक्त या जायदादको लाभ पहुंचाने के लिये ही उस अधिकार का काममें लाया जाना उचित है अन्यथा नहीं। वह क़र्ज़ा ऐसी सूरतमें लिया गया हो कि अगर उसकी जगह पर दूसरा कोई भी विचारवान आदमी होता तो वह भी उस ज़रूरत के लिये क़र्ज़ा ज़रूर लेता । क़र्ज़ा सिर्फ ज़रूरत के लिये लिया गया हो, और अगर मेनेजरका इन्तज़ाम खराब है और क़रज़ा देने वालेने नेकनीयती से वह क़र्ज़ा दिया है तो वह क़र्ज़ा जायज़ होगा । क़र्ज़ेके बारेमें यह बातें ज्यादा ख्याल की जायेंगी यानी क्या जायदाद किसी खास दबावमें आगई थी ? क्या जायदादपरसे कोई बड़ा खतरा हटाया गया था ? क्या जायदादको कोई लाभ पहुंचाया गया था ? अगर यह सब बातें उस क़रजे में पाई जाती हों या कोई भी पाई जाती हों तो क़र्ज़ा जायज़ माना जायेगा उक्त हनूमान प्रसाद का केस रेहनके बारेमें था मगर यही सब बातें बेंचने से भी लागू होती हैं; देखो मदन ठाकुर बनाम कन्टोलाल 14 Beng L. R. 187; 199; 1 I. 4. 321; 334; और यही बातें आम तौरसे कुल कर्जेसे लागू होंगी ।
नोट - उत्तराधिकार के प्रकरण ९, १० में जो औरतांकी कानूनी जरूरतें बताई गई हैं वह भी देखो दफा ६०२, ६७७.
दफा ४३१ मुश्तरका ख़ानदानकी जरूरतों का बारसुबूत और ख़रीदारकी ज़िम्मेदारी
( १ ) जब किसी मुश्तरका हिन्दू खान्दानका हिन्दू मेनेजर कोई जायदाद बचे या रेद्दन रखे तो खरीदने वाले या रेहन रखने वालेका यह कर्त्तव्य