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दफा ४८५-४८७]
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
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कि मामले फुजूल खर्ची या असावधानीके साथ किया गया था और रकम उससे सस्ते सूदकी दरपर मिल सकती थी--टिकैत गायननाथ बनाम मल्हा जी वैद्य (1925) P. H. C.C. 160; 6 Pat L. T. 507; 90 1.C. 276%; A. I. R. 1925 Patna 588. दफा ४८७ कानूनी प्रतिनिधि
इस विषयपर कानून जाबता दीवानी एक्ट ५ सन् १९०८ ई. की दफायें ५०-५२-५३ इस प्रकार हैं
दफा ५० (१) अगर वह आदमी जिसपर डिकरी हुई हो डिकरीकी तामील होनेसे पहले मर जाय तो डिकरीदारको अपत्यार है कि उस आदमी के कानूनी प्रतिनिधि अर्थात् उसके कंायम मुकामपर डिकरी जारी होने की दरख्वास्त, डिकरी देने वाली अदालतमें करे।
(२) अगर उस प्रतिनिधिके नाम डिकरी जारी कराई जाय तो उसकी जिम्मेदारी सिर्फ उतनीही होगी जितनी कि मरने वालेकी जायदाद उसके हाथमें आई हो और वह खर्च न कीगई हो । प्रतिनिधिकी जिम्मेदारी कितनी है यह मालूम करनेके लिये डिकरी इजरा करने वाली अदालतको अधिकार है कि अपनी मरजीसे या डिकरीदारकी दरख्वास्तपर उस प्रतिनिधिले हिसाब के ऐसे कागजात ज़बरदस्ती दाखिल कराये जो अदालतको मुनासिब मालूम हों।
दफा ५२ (१) मरने वालेका कानूनी प्रतिनिधि होने की हैसियतसे अगर किसी आदमी पर डिकरी हुई हो और वह डिकरी मरने वालेकी जायदादसे नकद रुपया दिलानेके वास्ते हो तो इजरा डिकरी उस जायदादकी कुर्की और नीलामके ज़रियेसे हो सकती है।
(२) अगर ऐसी कोई जायदाद उस कानूनी प्रतिनिधिके हाथमें बाकी न रहे और वह अदालतके इतमीनानके लिये यह साबित न कर सके कि उसने मरने वाले की जायदादको जो उसके कब्जेमें आई उचित रीतिसे खर्च किया है तो उसपर उतनीही जायदादकी बाबत डिकरी जारी हो सकती है जिसकी निस्वत वह पूर्वोक्त रीतिसे अदालतका इतमीनान न करा सका था और वह डिकरी उसपर उसी तरह जारी होमी कि मानो वह उसीकी जात खास पर हुई है।
दफा ५३-पूर्वोक्त दफा ५० और ५२ के मतलबोंके लिये जो जायदाद किसी आदमीके बेटे या दूसरी औलादके कब्ज़ेमें इस तरहपर आये कि उस जायदादपर हिन्दूला के अनुसार मरने वालेके कर्जेका बोझ हो तो समझा जायगा कि वह जायदाद मरने पालेकी वही जायदाद है जो उसके बेटे या दूसरी औलादके कब्जे में उसके कानूनी प्रतिनिधिकी हैसियतसे आयी है।