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मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
यह यह न साबित करें, कि पिता द्वारा लिया हुआ क़र्ज़ ऐसा क़र्ज़ है जिसे हिन्दूला गैर तहज़ीब क़रार देती है-रजीतसिंह बनाम रम्मनसिंह 87 I. C. 654; A. I. R. 1925 All 781. ' नाबालिराके मेनेजर व वली--हिन्दू नाबालिगोंके पिता द्वारा किया हुआ इन्तकाल, जो वह न केवल संयुक्त हिन्दू परिवारके प्रबन्धकर्ताकी हैसियतसे बल्कि नाबालिगोंके वलीकी हैसियतसे करता है वादुलनज़री उनपर लाजिमी है। चाहे पिताके अधिकार वलीसे कम हों या अधिक; किन्तु जब तक यह न साबित किया जाय कि इन्तकाल अनावश्यक या गैर कानूनी तरीकेपर किया गया है तब तक इन्तकाल बादुलनज़री जायज़ होगा-अलागर आयंगार बनाम श्रीनिवास आयंगार 22 L. W. 515; (1925 ) M. W. N. 777; A. I. B. 1925 Mad. 128.
पिता द्वारा रेहननामा--व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी-मुश्तरका स्वान्दानी जायदाद-पुत्रोंके अधिकार-यदि नीलामके योग्य हैं, मु० महराजी बनाम राघोमन A. I. R. 1926 Oudh 6].
हिन्दु पिता द्वारा दुरुपयोग-पुत्रों की जिम्मेदारी नहीं है-रामेश्वर सिंह बहादुर बनाम दुर्गा मन्दिर 7 Pat. L. J. 42; A.L. R.1926 Pat.14.
. एक हिन्दू पिताने किसी अन्य व्यक्तिके हाथ मुश्तरका खान्दानी जायदाद बेची। कुछ हिस्सेदारोंकी तहरीकपर बयनामा मंसूख कर दिया गया, जिसपर खरीदारने पिताके खिलाफ क़ीमत खरीद वगैरः के वापस करनेका दावा किया । मुकद्दमेंके दौरानमें ही पिता मर गया और उसका पुत्र बतौर कानूनी प्रतिनिधिके फरीक बनाया गया। तय हुआ कि पुत्रके विरुद्ध जो अपने पिताका कानूनी प्रतिनिधि है डिकरी दी जाय और उसकी तामील उसकी अधिकृत जायदाद पर, जिसपर हिन्दूलॉ के अनुसार पिताके ऋणोंकी जिम्मेदारी है की जाय--कल्लूमल बनाम परतापसिंह 92 I. C. 787; A. I. R. 1926 Ondh 301.
कैसे हनशिफ़ाका क़र्ज़, जायदादपर बाप नहीं डाल सकता- साधारण सरीक्रेपर हिन्दू पिता पैतृक जायदादपर, किसी दूसरी जायदादके हक़शिफ़ेके लिये कर्जका भार नहीं डाल सकता, शङ्करशाही बनाम बैजूराम 23 A. L. J. 204; 47 A. 381; L. R. 6 All. 214; 86 I. C. 769; A. I. R. 1925 All. 333. दफा ४४१ बापका किसी नाबालिगके दावामें समझौता करलेना
हिन्दु नाबालिगका बाप मुश्तरका हिन्दू खान्दानका मेम्बर और मेनेजर है, किसी नालिश करने की गरज़से वह उस नाबालिग्रका वली बनाया गया