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पैतृक ऋण अर्थात् मौरूसी क़र्जा
(सातवां प्रकरण
जांच करने हीसे यह मालूम कर सकता था कि वह कर्जा बे कानूनी था और बुरे कामोंके लिये ही लिया गया था, देखो-- जुहारमल बनाम एकनाथ 24 Bom. 343; 1 Bom. L. R.
839; 16 Mad. 99. पुत्र उस कके वास्तविक (दरअसल कर्जा नहीं लिया गया यानी दस्तावेज़ किसी अन्य कारणसे लिखी गई थी या रुपया दिखलाकर फिर वापिस ले लिया गया इत्यादि ) होने और न होनेका झगड़ा भी उठा सकते हैं, देखो-13 1. A. 1-18; 13 Cal. 21.
(२) नीलामसे हक़ नहीं मारा गया-हालका एक मुकद्दमा देखोहनूमानदास रामदयाल बनाम वल्लभदास (1918 ) 20 Bom. L. R. 472. मुहाभलेह नं०६ और ७ ने सन् १९०४ ई० में मुहाअलेह नं०५ से कुछ रकम दिला पानेका दावा किया था जिसकी डिकरी उन्हें प्राप्त होगई किन्तु उस समय मुहाअलेह नं०५ के एक लड़का ४ वर्षका था जो इस हालके मुकदमे में मुद्दई है। उक्त डिकरीमें अदालतके बाज़ाविता नीलामके द्वारा मुहाभलेह नं. ५ के दो मकान नीलाम होगये जिन्हें मुद्दाअलेह नं० १ से ४ ने खरीद किया । सन् १९१५ ई० में मुद्दामलेह नं०५ के लड़के ने दावा किया कि जो नीलाम मौरूसी मकानोंका हो चुका है उनमें आधा हिस्सा मेरा करार दिया जाय क्योंकि वह हिस्सा खरीदार मुद्दाअलेह नं०१ से ४ के पास नहीं गया
और मालिकाना दखल दिलाया जाय । मुहाअलेह नं० १ से ४ ने यह उजुर किया कि अदालतके नीलामसे लड़केका हक़ खरीदारके पास चला गया अब वह दावा नहीं कर सकता अदालतने माना कि लड़केका हिस्सा अदालतके नीलामसे खरीदारके पास नहीं गया, लड़का उससे ले सकता है, मुद्दाअलेह की उजुरदारी ऐसे मामलेमें नहीं मानी जायगी जहां किसी कोपार्सनरने खरीदारके विरुद्ध दावा किया हो।।
- प्रिवी कौन्सिलका मुकदमा भी देखो जिसमें एक हिन्दू शामिल शरीक परिवारका बाप छत्रपति मिताक्षराला के प्रभुत्वमें रहता था, बेनीमाधवने ५ छत्रपतिपर नालिश करके सादे कर्जेकी डिकरी प्राप्त करली, छत्रपतिके पुत्रोंने
बेनीमाधव पर दावा किया कि उनका हिस्सा डिकरीसे बरी कर दिया जाय किन्तु यह दावा अनायास डिस्मिस होगया। बेनीमाधवने कुल मौरूसी जायदाद नीलाम कराई और खुद खरीद लिया, नीलामकी मंजूरी अदालतने इन शब्दों में दी "Right. title and interest of the Judgment debtor" मयूनका हक, स्वत्व, तथा अधिकार खरीदारको दिया गया, अपीलमें एक प्रश्न ज़रूरी माना गया कि अदालतके नीलामसे क्या चला गया ? सबजजने यह माना था कि छत्रपतिका बिना बटा हुआ हिस्सा चला गया, हाईकोर्टने