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दफा ४८३]
पुत्र और पौत्रकी जिम्मेदारी
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जबकि पुत्र रेहनके मुकदमे में फरीक हों तो वह किसी दूसरे मुकदमे में यह प्रश्न नहीं उठा सकते कि रेहन या नीलाम जायज़ नहीं था। बापपर जो. दावा किया जाय उसमें यदि पुत्र फरीक़ न बनाये जाये तो महाजनको अधिकार है कि वह पुत्रोंपर अलग दावा दायर करे, देखो-रामसिंह बनाम शोभाराम (1907) 29 All. 544. धर्मसिंह बनाम श्रङ्गनलाल (1899 ) 21 All. 301. आर्यबुद्र बनाम डोरासामी (1888) 11 Mad. 413.
बैबातकी डिकरी-किसी संयुक्त परिवारके केवल मेनेजरके खिलाफ प्राप्त बयबातकी डिकरी; जो किसी ऐसे रेहननामेकी बिनापर हो, जो कानूनी आवश्यकतापर किया गया हो, परिवारके उन समस्त सदस्योंके खिलाफ भी लाजिमी है जो कि मुकदमे में फ़रीक़ नहीं बनाये गये । यदि हिन्दू पिता अपने पुत्रोंका कानूनी प्रतिनिधि हो सकता है तो कोई कारण नहीं है कि क्यों चाचा या भाई जो संयुक्त परिवारका मेनेजर हो, उसी प्रकार अपने भाइयों या भतीजोंका प्रतिनिधि न हो सके, किसी ऐसे रेहननामेकी नालिशमें जो क़ानूनी आवश्यकतापर किया गया हो । यदि इस प्रकारका मामला हो, तो उसका प्रभाव समस्त परिवारपर पड़ता है और यदि उस दस्ताबेज़की बिना पर केवल मेनेजरके खिलाफ नालिश की जाती है, तो इस प्रकारकी मालिश द्वारा प्राप्त डिकरीकी पाबन्दी समस्त परिवारके सदस्योंपर होती है--पिरथी पालसिंह बनाम रामेश्वर A. I. R. 1927 Oudh. 27.
नोट--नापके किये हुए रेहनके दावेमें जहां तक होसके सब पुत्रोंको 'चाहे वे बापके शरीक रहते हो या न रहते हो या नवजात (एक दिनका बच्चा भी) हो, फरीक बना देना चाहिये । और उन लोगोंको भी फरीक बनाना इतनाही जरूरी है जो किसी किस्मका हक रेहनकी जायदादमें रखते हैं।। दफा ४८३ नीलामसे पुत्रके हक़का चला जाना
(१) बापके विरुद्ध जो डिकरी हुई हो उसके अनुसार कोपार्सनरी जायदादके नीलाम हो जानेपर पुत्रोंका हक भी चला जाता है, देखो-मदन थाकुर बनाम कंटूलाल 1 I. A. 321; 14 B. L. R. 187; 22 W. R.C. R. 56; 13 I. A. 1; 13 Chl 21; 15 I. A. 99; 16 Cal. 717,16 I. .A 1; 12 Mad. 142; 17 Bom. 718; 8 Cal. 617, 10 C. L. R.1893 23. Cal. 262; 6 All. 234; 6 Cal L. R. 36.
मातादीन बनाम गङ्गादीन 31 All. 599. में माना गया कि सिर्फ दो हालतों में हक नहीं चला जाता, वह दोनों हालते यह है--
(१) जब कि पुत्रोंके हक़ न बेचे गये हों या (२) जब कि पुत्र यह साबित करें कि बापने कर्जा ये कानूनी या बुरे
कामोंके लिये लिया था और महाजन, खरीदार या दूसरा खरीदार