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[ छठवां प्रकरण
उसी सीमा तक नहीं है, जहां तक कि उसके सदस्योंके शान्ति पूर्वक रहनेका प्रबन्धमें बल्कि उसका असली सम्बन्ध प्रबन्धके उन मामलातोंसे है जो कि पारिवारिक सदस्योंके मध्य उनकी जायदादके सम्बन्धमें हों, सदाशिव पिल्ले बनाम शानमुगम पिल्ले A. I. R. 1927 Mad. 126.
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मुश्तरका खान्दान
(४) पुत्रपर पिता ऋणकी जिम्मेदारी, जो गैर तहज़ीबी न हो, उसी प्रकार है, चाहे उसका अमल अदालत द्वारा हो या किसी खानगी समझौते द्वारा । केवल वह जायदाद जिसे महाजन पिताके जीवन में नीलाम करा सकता था, ऐसी जायदाद है, जिसे वह उसकी मृत्युके पश्चात् भी नीलाम करा सकता है, बिन्दाप्रसाद बनाम राजबल्लभ सहाय 91 I. C. 785 48A, 245 24 A. L. J. 273; A. I. R. 1926 All. 220.
यह एक हिन्दू पिता के लिये योग्य है कि वह तमाम मुश्तरका खान्दान का. जिसमें कि वह स्वयं और उसके नाबालिग पुत्र हों, उसके खिलाफ किसी रेननामेकी नालिशमें, प्रतिनिधि हो । फलतः जबकि राहिनके पुत्र रेहननामे की रकमकी अदाईकी मियाद से १२ वर्षके बाद मुद्दालेह बनाये जांय, तो उनके खिलाफ नालिशमें तमादी नहीं होती, मु० राजवन्त बनाम रामेश्वर 12 O. L. J. 235; 87 I. C. 180; A. I. R. 1926 Oudh. 440.
मुश्तरका जायदादका इन्तक़ाल
दफा ४४२ मुश्तरका जायदादका इन्तक़ाल कौन कर सकता है
नीचे लिखे हुये आदमी मुश्तरका खान्दानकी जायदादका इन्तक़ाल कर सकते हैं और इन्हींका किया हुआ इन्तक़ाल जायज़ माना जायगाः( १ ) जिस खान्दानमें सब बालिग़ कोपार्सनर हों और सब बालिय कोपार्सनर मिल कर जब जायदादका इन्तक़ाल करें, देखो -महाबीरप्रसाद बनाम रामयाद 12 Beng. L. R 90, 94.
(२) मुश्तरका खान्दानका मेनेजर सिर्फ उन सूरतोंमें जिनका ज़िकर इस किताबकी दफा ४२६ में किया गया है ।
(३) बाप, सिर्फ वहां तक जिस क़दर कि दफा ४४४ में बताया गया है । ( ४ ) वह एक कोपार्सनर जो अन्य कोपार्सनरोंके मर जानेके बाद जीता
रहा हो उन सूरतों में जिसका ज़िकर दफा ४४५ में किया गया है । जिस किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दानमें दो या दो से ज्यादा को पार्सनद हों तो कोई भी कोपार्सनर अन्य कोपार्सनरोंसे अधिकार पाये बिना