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दफा ४६५-४६८]
दायभाग-लॉ
(१) देखो, दायभाग मानने वाला विजय अपने तीन पुत्र मुकुंद, कुमुद और अनन्तको छोड़कर मर गया यह तीनों भाई अपने बापके वारिस और श्रापसमें कोपार्सनर हैं पीछे मुकुन्द एक विधवा छोड़कर मर गया तथा कुमुद एक लड़की छोड़ कर मर गया यह विधवा और लड़की अनन्तके साथ कोपार्सनर होंगी।
(२) दायभागका मानने वाला विजय बिना वसीयत किये मर गया उसने अपना एक पुत्र, और एक पोता जिसका बाप मर गया है, और एक परपोता जिसका बाप और दादा मरगया था, छोड़ा यह सब विजयके वारिस होकर उसकी जायदादमें कोपार्सनर होंगे। परपोतेका लड़का कोपार्सनरीमें नहीं शामिल होगा।
(३) दायभागके अनुसार कोपार्सनरी भाइयों, चाचाओं, भतीजों, या चाचाओंके पुत्रों आदिमें होती है मगर वह बाप और बेटे, तथा दादा और पोते, इसी तरह परदादा और परपोतेके बीचमें नहीं होती देखो-.
विजय
अनन्त प्रयाग धीरज विचार करो अगर विजय मुकुन्द, कुमुद, अनन्तको छोड़कर मर जाय तो वह तीनों वारिस हैं तथा आपसमें कोपार्सनर हैं। अगर प्रयाग को छोड़कर मुकुन्द और धीरजको छोड़कर कुमुद मर जाय तो उस समय अनन्त प्रयाग, और धीरज आपसमें कोपार्सनर हैं। अगर मुकुन्द, कुमुद अनन्त, प्रयाग तथा धीरज सब जीवित हों तो प्रयाग और धीरज कोपार्सनर नहीं होंगे। अगर कोपार्सनरीकी हालतमें प्रयागको छोड़कर मुकुन्द मर जाय तो प्रयाग अपने बापका वारिस होगा और कोपासेनरीमें शामिल हो जायगा।
नोट-मुसलमान, पारसी, ईसाई आदिमें दो भाई आपसमें कोएयर ( Coheir ) अर्थात समान अधिकार प्राप्त उत्तराधिकारी होते हैं परन्तु दो हिन्दू भाई आपसमें कोपार्सनर होते है। दफा ४६७ दायभागला की कोपार्सनरी जायदाद
मिताक्षराला में जितनी क्रिस्मकी जायदाद कोपार्सनरी जायदाद में शामिल मानी गयी है वही दायभागलॉ में भी मानी गयी है देखो इस किताबकी दफा ४१७. दफा ४६८ दायभागमें हर एक कोपार्सनर अपना हिस्सालेता है
मिताक्षरालॉ की कोपार्सनरी में सब कोपार्सनरोंका मालिकाना अधिकार एक समान मिला हुआ रहता है अर्थात् मुश्तरका खान्दानका कोई