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दफा ४५४ ]
मुनाफे का इन्तक़ाल
दशामें, मैनेजर प्रतिनिधि स्वरूप रहता है और दरअसल मुश्तरका खान्दान उस लिखित हिस्सेका अधिकारी होता है। अतएव यू० पी० लैण्ड रेवन्यू एक्टकी दफा १११ ( १ ) (बी) के अनुसार हुक्मकी पाबन्दी उन छोटे मेम्बरों पर भी होती है जिनके नाम मालगुजारीके क्राग्रज़ोंमें नहीं दर्ज होते जहांपर कि केवल मैनेजरका नाम होता है -36 All 313; 24 O. C. 143 Full. 20 O. C. 241. शिवबक्ससिंह बनाम इन्द्रबहादुरसिंह 120. L. J. 239; 2 O. W. N. 209; 28 O. C. 194; 87 I. C. 185; LR. 6 0 65; A. I. R. 1925 Oudh. 392.
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व्यवसायिक झूठा - दिवालिया होना - पुत्रका हिस्सा - जिम्मेदारीखेमचन्द बनाम नारायणदास सेठी A. I. R. 1926 Lah. 141.
किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दानके मेनेजरके दिवालिया हो जानेपर, सरकारी रिसीवर खान्दानी जायदादके नुमायशी इन्तक़ालपर, जो कि फैसले के कुछही पहिले खान्दानके बड़े सदस्यों द्वारा किया गया हों, जबकि मैनेजर खान्दानका छोटा सदस्य हो, एतराज़ किया जा सकता है - नारायनदास an afguarga 85 1. C. 896; 46 All. 912; A. I. R. 1925 All. 194 ( 1 )
मेनेजरको रन्डी रखना -- जब किसी मुश्तरका खान्दानका मेनेजर रण्डी रख के और खान्दानी जायदादका रुपया रण्डीकी जायदादको तरक्की में लगावे, तो खान्दानके दूसरे मेम्बरोंको यह अधिकार नहीं है कि रण्डीको तरक्की शुदा जायदादसे उस रक़मके वसूल करनेका दावा करें, या उसे मुश्तरका खान्दानकी रक्कम होनेका दावा करें-- देवीराम बनाम प्रहलाददास 21 L. W. 183; 86 I. C. 201; L. R 6 P. C. 92; A. I. R. 1925 P. C. 38 ( P. C. )
पिताका दिवालिया होना- जब किसी मुश्तरका खान्दानका कोई सदस्य दिवालिया क़रार दिया जाता है, तो उसके पुत्रोंके बिना बंटे हुये हिस्से किन्तु खान्दानके दूसरे सदस्योंके नहीं, रिसीवरको प्राप्त होते हैं, यद्यपि पुत्रों के हिस्सेपर किसी ऐसे क़र्ज़ की ज़िम्मेदारी न पड़ेगी, जिसे वे ग़ैर तहज़ीबी या गैर क़ानूनी साबित कर सकें-- शिवगोपाल बनाम सुखरू 87 I. C. 957; A. I. R. 1925 Nag. 418.
पिता दिवालिया क़रार दिया गया और बटे हुये पुत्रोंके हिस्से फीसियल रिसीवरको प्राप्त होते हैं किन्तु वे इस बिनापर कि क़र्ज रौर तहज़ीबी या गैर क़ानूनी है बटवारेके लिये नालिश दायर कर सकते हैं । प्रान्तीय इनसालवेन्सी ( दिवालिया ) ऐक्ट दफा २ - जी० नरसमलू बनाम पी० बासव शङ्करन् 85 I. C. 439; AIR 1920 Mad. 249; 47 M. L. J. 749