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दफा ४२६ ]
हैं - ऐसे मामलों में उचित कल्पना- मुलगू चेंगप्पा बनाम 23 L. W. 390; (1926) M. W. N. 289; 92 I. C. 1926 Mad. 406; 50 M. L. J. 145.
अलहदा जायदाद
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देव सनम्बा गारू
720; A. I. R.
मेनेजर द्वारा रेहननामा - हिन्दू मुश्तरका खान्दानके मेनेजरको उस सूरत में जबकि क़ानूनी आवश्यकताकी शहादत न हो, किसी ऐसे इकरारनामे के करने में न्यायानुकूल न होगा, जिसके द्वारा किसी रेहननामेका इनफ़िक़ाक़ ४० वर्षके लिये हट जाता हो । कानिन फ़िज़ा बीबी बनाम दातादीन 20. W. N. 650; 90 I. C. 184; A. I R. 1925 Oudh 678.
संयुक्त परिवार - मेनेजर - उसके द्वारा पारिवारिक जायदादका रेहन किया जाना-उस जायदादका व्योरा, जिसका मालिक बिलकुल वही है - प्रभाव उन्ना मालप्पा अम्मल बनाम अभय चेट्टी 23 L. W. 168; 92I. C. 524; 50 M. L. J. 172.
क़र्ज़ में सूदकी दर -- किसी हिन्दू खान्दानके मैनेजरको, चाहे वह पिता हो या न हो, यह क़ानूनन् अधिकार नहीं है कि वह क़र्ज़ सूदकी ऊंची दर पर ले, जब तककि इस बातकी आवश्यकता न हो कि उस प्रकारकी दरपर कर्ज लिया जाय, और यदि सुदकी दर अधिक हो तो यह महाजनकी जिम्मेदारी होगी कि वह इस बातको साबित करे कि उस ऊंची दरपर क़र्ज़ लेने की ज़रूरत थी । किसी अदालतको बिना शहादत इस बातके मान लेनेका अधिकार नहीं है कि अमुक सूदकी दर सख्त या ऊंची है और वेजो मामलेका विरोध करते हों प्रमाणित करें कि वादुलनज़रीमें सूदकी दर परिस्थिति के अनुसार ऊंची थी । किसी किसी सूरत में यह हो सकता है कि असली सूद की दर वादुलनज़रीमें इस क़दर अधिक हो कि उसका सबूत अनावश्यक समझा जावे और महाजन यह समझ ले कि उसका यह कर्तव्य है कि वह उसकी आवश्यकता प्रमाणित करे । अन्य सूरत में यह भी हो सकता है कि सूद की दर ऊंची तो हो, किन्तु इस क़दर ऊंची न हो कि महाजन स्वयं इस बात को सिद्ध समझ ले कि उसे उसकी आवश्यकता प्रमाणित करनी होगी, चाहे अदालत ने उसे ऐसा करनेका हुक्म भी न दिया हो। इस प्रकारकी नालिशमें वह सही तरीक़ेपर दण्डित नहीं किया जा सकता यदि उसने उसे स्पष्ठ न किया हो । जब अदालत तनक्रीह महाजनको उसकी व्याख्याके लिये बुलाना आवश्यक न समझे और किसी फैसलेकी वजेहसे भी यह पता न लगे कि उसके लिये उसका स्पष्टीकरण आवश्यक है तो अदालत अपील, बिना उसको उसके स्पष्ट करनेका अवसर दिये हस्तक्षेप न करेगी, यदि सूदकी दर इतनी ऊंची न होगी कि किसी भी परिस्थितिमें वह नाजायज़ समझी जा सके ।
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एक रेहननामेकी तामीलके सम्बन्धमें नालिशथी । रेहननामा मई सन १६०१० को मुद्दाअलेह नं० १ द्वारा जो मुद्दाअलेह नं०२ से६ तक संयुक्त पिता