________________
दफा ४१६ ]
र्जित जायदाद न थी । मुश्तरका खान्दान कुछ द्वारा जायदाद खरीदी गई और खरीदकी रक्कम, उस खरीदी हुई जायदाद और पैतृक आयदादके २ विस्वा के रेहननामे द्वारा अदाकी गई। मुरतहिनने रेहननामेके बिना पर नीलामकी डिकरी हासिल किया । मुरतहिनके नीलाम के पहिलेही, मुहय्यानने एक नालिश द्वारा यह हुक्म चाहा कि २ विस्वा पैतृक जायदाद के सम्बन्धके रैहननामे और नीलामकी पावन्दी उनपर नहीं है और रेहनना मेमें दर्ज दूसरी जायदाद का दावा छोड़ दिया तथा हुक्म प्राप्तकर लिया । बाक्क़ी जायदाद जो खान्दानके फ़ायदेके लिये खरीदी गई थी बेचदी गई एक पीछेकी नालिशमें जो रेहननामे और नीलामकै जायज़ होनेके लिये मुश्तरका खान्दानके विरोध में दायर की गई थी तय हुआ कि-
( १ ) रेहननामेकी पाबन्दी खान्दान पर है, और यह कि-
अलहंदा जायदाद
•
४७१
( २ ) नालिश जाबता दीवानीके आर्डर २ रूल २ के अनुसार नहीं हों सकती । श्रभयदत्त सिंह बनाम राघवेन्द्र प्रताप सहाय 3 0. W. N. 40.
ईसाई और हिन्दूकी मुश्तरका जायदाद - जबकि एक ईसाई और उसके हिन्दू सम्बन्धी एकही में मुश्तरका खान्दानकी तरहपर रहते हों और यह मालूम हो कि कितनी ही जायदादों के पृथक करनेकी नीयत उनकी नहीं है और तमाम जायदाद एक मुश्तरका खान्दानकी जायदाद समझी जाती हो ।
तय हुआ कि उसके मध्यमें एक ऐसा समझौता विदित होता है जिसके अनुसार वे सब जायदाद के समान अधिकारी हैं। जोगी रेडी बनाम चिन्नाबी रेड्डी 22 L. W. 116; 90 I. C. 1016; A. I. R. 1925 Mad. 1195.
अलहदा या खुद हासिलकी हुई जायदाद
(Separate or self aquired property)
DD
दफा ४१८ अलहदा या खुद कमाई हुई जायदाद
नीचे लिखे हुए तरीक़ों में से किसी भी तरीक़ेसे जो जायदाद या धन हासिल किया गया हो वह जायदाद या धन उस आदमीका अलहदा माना जायगा जिसने कि उसे हासिल किया है और चाहे वह आदमी मुश्तरका खानदानमें रहता हो और मुश्तरकन् रहते हुये हासिल किया हो । अर्थात् वह जायदाद और धन उस आदमीके निजका होगा मुश्तरका खानदानका कोई भी आदमी अपना कोई हक़ उसमें नहीं रखता। नीचे देखो