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मुश्तरका खान्दान
[छठवां प्रकरण
न्यायपूर्ण है जब उससे खान्दानका स्पष्ट फ़ायदा हो, किन्तु किसी फ़ायदेमन्द व्यवसायका प्रारम्भ करना मैनेजर द्वारा इन्तकालके लिये न्यायपूर्ण कारण न होगा, चाहे वह व्यवसायिक खान्दान हो या न हो। 1 B. H. C. App.bl; 34 Com. 72, 33 All. 272 (P.C.'; 6 M. I. A. 393 (P.0.); 20 C.
W.O. 6453; 20 W. R. 38; 3 N. W. P. H. C. 4; 32 Bom. 577; 28 C. L. J. 250; (1912) M. W. N. 167; (1918) M. W. N. 802; 12 A. L. J. 641; 42 All. 559; 39 C. L. J. 256 (P.C.) ard 39 All. 437 (P. C.) Disc ( Rupchand Bilaram A. J. C.) लक्ष्मीचन्द बनाम खुशालदास 18 S. L. R. 230; 88 I.C. 116; A.I. R. 1925 Sind.330. दफा ४२९ मेनेजरके द्वारा मुश्तरका जायदादका इन्तकाल
किया जाना हिन्द मुश्तरका खानदानके मेनेजरको अधिकार है कि मुश्तरका खानदानकी जायदादको वह रेहन रख सकता है, और बेंच सकता है इस इन्त. कालसे वालिग और नाबालिग दोनों कोपार्सनरोंका लाभ और उनकी जायदाद पापंद होगी मगर शर्त यह है कि--
(१) अगर कोपार्सनर बालिग हैं तो रेहन या विक्रीके समय उनकी मंजूरी होना ज़रूरी है चाहे वह मंजूरी प्रत्यक्ष लीगई हो या प्रकारांतरसे ली गई हो; देखो मिलर बनाम रङ्गनाथ 12 Cal. 389; गरीबउल्ला बनाम खलक सिंह 25 All. 407, 415; 30 I. A. 165, 169.
(२) अगर कोपार्सनर नाबालिग हैं तो रेहन या बिक्री उस समय ठीक मानी जायगी जब वह रुपया खान्दानके व्यापार या खानदानकी कानूनी ज़रूरतों (दफा ४३०)के लिये लिया गया हो ऐसी सूरतमें नाबालिग कोपार्सनर की मुश्तरका जायदाद पावंद होगी; देखो-हनूमान प्रसाद बनाम मुसम्मात बबुई 6 M. 1. A. 393; 21 W. R. 1967 21 All 71, 83; 25 I. A. 183.
खानदानकी ज़रूरतोंके लिये जब मेनेजर मुश्तरका जायदादका इन्तकाल करे और उसने बालिग कोपार्सनरोंकी रजामन्दी न ली हो तो भी उनकी रज़ामन्दी उस समय समझी जायगी जब कि खानदानी ज़रूरत बहुत सख्त हो और मेनेजरको जायदादके इन्तकालके समय उन कोपार्सनरोंकी मंजूरी हासिल करनेका सुभीता और समय न हो; देखो--छोटीराम बनाम नरायनदास 11 Bom. 605; 12 Cal. 389; 399; 29 Cal. 797.
जबकि मुश्तरका शानदानके व्यापारके करजे अदा करने के लिये जायदादका इन्तकाल किया गया हो तो उसमें भी कोपार्सनरोंकी रजामन्दी समझी जायगी जैसाकि ऊपर कहा गया है। देखो--श्यामसुंदर बनाम अचन कुंवर 21