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दफा ४२२ ]
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यही किया जायगा कि जायदाद का पूरा बंटवारा हो चुका है, देखो वैद्यनाथ बनाम एय्यासामी 32 Mad. 191,
अलहदा जायदाद
एक हिन्दू अपने पुत्र और पौत्रों सहित मुश्तरका रहता है उसने दान के तौर पर अपनी जायदाद पौत्र को देवी दानपत्र में उसने वह जायदाद अपनी कमाई हुई बताई थी और दानपत्रमें उसके पुत्रके भी हस्ताक्षर थे यह साबित किया गया था कि पुत्रको दानपत्रका मतलब मालूमथा जब कि उसने हस्ताक्षर कियेथे इसपर अदालतने यही अनुमान किया कि वह जायदाद उस हिन्दू की अपनी कमाई हुई थी; देखो कल्यान जी बनाम वेजनजी
32 10m. 512.
उस सूरत में भी जब कोई व्यक्ति किसी हिन्दू मुश्तरका खान्दानका कर्ता नहीं होता परिस्थितिके लिहाजले अदालत, इस बातको तय करती है कि वह व्यक्ति, जिसके खिलाफ दावा किया गया है उस खान्दानका प्रतिनिधि है और वह दावा उसके खिलाफ़ समस्त खान्दानके प्रतिनिधि स्वरूप किया गया है । अन्नपूर्णा कुंवर बनाम जागेश्वर मिश्र 87 1. C. 208; A. I. R.1925Oudh 658. संयुक्त कमाई - कल्पना और सबूत - मोतीलाल बनाम हरजीमल A. I. R. 1926 Nag. 146.
जब संयुक्त परिवारकी इब्तदायी जायदाद, ऐसी न हो, जिसका कोई आधार हो सके, तब यह कल्पना नहीं हो सकती, कि बादकी जायदाद उसकी सहायता से उपार्जित की गई । इस बातके प्रमाणित करने के लिये; कि स्वयं उपार्जन संयुक्त परिवारकी जायदाद में मिश्रित किया गया था, उस कार्य के स्पष्ट इरादे को भी प्रमाणित करना चाहिये । एक़बालसिंह बनाम बङ्गबहादुरसिंह 93 1. C. 634.
जायदाद के स्वयं उपार्जित होनेके विरुद्ध कल्पना -जायदाद, उसी जायदाद और कुछ पूर्वजों की जायदादको रेहन करके खरीदी गई — आया रेहन - नामेकी पाबन्दी है केवल पूर्वजोंकी जायदाद की बिनापर रेहननामेके जायज़ होनेके विरुद्ध नालिश - इस्तक़रार - आया बादकी शेष जायदादकी बिनापर रेननामेके नाजायज़ ठहरानेकी नालिश में बाधा पड़ती है, अभयदत्तसिंह बनाम राघवेन्द्र प्रताप संहार्य - 18 O. L. J. 37; 91 1. C. 976; A. I. R. 1926 Oudh 77.
यद्यपि यह कल्पना है कि हिन्दू परिवार संयुक्त समझा जाता है जब तक उसके विरुद्ध कोई प्रमाण न हो, किन्तु उस सूरत में जब यह प्रमा णित किया जाता हो कि नालिशके पूर्व एक या दो सदस्य पृथक होगये थे, यह कल्पना नहीं होती । खेवटके दाखिले, जिनमें सदस्योंके हिस्से अलग अलग नियत किये गये हैं, व्यक्तिगत सदस्योंके नाम उनकी पृथक पृथक प्राप्ति
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