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दफा ३७५-३७७ ]
नाबालिग्री और वलायत
जायेंगी, उस वक्त से मियाद शुरू होगी । अर्थात् क़ानूनमें जिस कामके लिये जो मियाद क़ायम कीगई है वह मियाद उस वक्तसे शुरू होगी जब दोनों क़िस्म की अयोग्यतायें नष्ट होजायें । ( देखो उदाहरण नं० २ ).
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(३) जब किसी आदमीकी अयोग्यता उसके मरनेतक रही हो तो उसका क़ायम मुक़ाम जायज़ उसके मरनेके बाद नालिश उसी मियादके अंदर दायर कर सकता है या दरख्वास्त दे सकता है, जो मियाद उस मरे हुये आदमीकी अयोग्यता न होमेकी सूरतमें होती । अर्थात् मियाद उसके मरनेकी तारीख से शुरू होगी ।
( ४ ) अब किसी आदमीकी अयोग्यता उसके मरनेतक रही हो, और उसका कायममुकाम जायज़ भी उसवक्त अयोग्य हो जबकि वह आदमी मरा है तो मियाद उसवक्त से शुरू होगी जब क़ायममुकाम जायज़की अयोग्यता नष्ट होजाय । जैसा कि ऊपर न० १ और न० २ में कहा गया ( देखो उदाहरण नं० ३ ).
उदाहरण - ( १ ) मथुरादास, एक महाजनका लड़का है जो अज्ञान ( नाबालिग़ ) है । मथुरादासको किसी नालिशका हक़ उसकी अज्ञानता में पैदा होगया जिसकी मियाद ६ सालकी है । और नालिशका हक़ पैदा होनेके १० वर्षके बाद मथुरादास बालिग हुआ तो वह बालिग होनेकी तारीखसे तीन सालके अन्दर वही दावा दायर कर सकता है ।
(२) सुरेन्द्रको अपनी अज्ञानता ( नाबालिगी ) में नालिश करनेका एक हक़ प्राप्त हुआ यह हक़ प्राप्त होनेके बाद मगर अज्ञानताहीमें सुरेन्द्र पागल होगया, तो क़ानून मियादकी मुद्दत सुरेन्द्रकी अज्ञानता और पागलपन दोनों के ख़तम होजानेपर शुरू होगी ।
(३) ब्रजेन्द्रको अपनी अज्ञानता में नालिश करनेका बैंक हक्क पैदा हुआ लेकिन वह बालिग होनेके पहिलेही मरगया और ब्रजेन्द्रना लड़का सुरेन्द्र वारिस हुआ । सुरेन्द्र उसवक्त अज्ञान है जब उसका बाप ब्रजेन्द्र मरा तो कानून मियादकी मुद्दत उस वक्त शुरू होगी जब सुरेन्द्र बालिग होजाय ।दफा ३७७ अर्जी देना कहांतक लागू होगा
ऐक्ट सन् १८७७ ई० की दफा ७ के अनुसार अज्ञान बालिग होनेपर हर क़िस्म की दरख्वास्त दे सकताथा, अदालतों को इस बातसे बहुत तकलीफ हुई क्योंकि अज्ञानके लिये यह मुमकिनथा कि बीस वर्ष बादभी जब कि वह बालिग्रहो और उसकी जायदाद अदालतकी डिकरीके जारी होनेसे नीलाम होगई हो, तो उस नीलामंके मन्सून करा देनेके लिये दरवास्तवे