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मुश्तरका खान्दान
दफा ३९८ बटवाराके बाद मुश्तरका हो जाना
ऊपर मुश्तरका खानदानकी अलामत बताई गई है। इसका कारण यह है कि अगर किसी हिन्दू खानदानमें बटवारा भी हो जाय, उसके बाद जब रटे हुये आदमियोंकी औलाद होगी तो फिर वह मुश्तरका खानदान उतने हिस्से की जायदाद में हो जायगा जितना हिस्सा कि बटवारा कराने में मिला था । ऐसा मानो कि तीन भाई क, ख, ग, जो अभी तक शामिल शरीक रहते थे तीनोंने आपसमें बटवारा करा लिया और अपना अपना हिस्सा जायदादमें अलहदा करा लिया, अब देखिये उनकी ऐसी हालत सिर्फ थोड़ेही समय तक रहेगी क्योंकि जहां उनके लड़के पैदा हुये, तीनोंके, तीन मुश्तरका खानदान हो जायेंगे, क्योंकि मिताक्षरा लॉके अनुसार लड़के, पोते, परपोते मौरूसी जायदाद में अपनी पैदाइश के समय से ही हक़दार हो जाते हैं ।
[ छठवां प्रकरण
जब किसी हिन्दू आदमीकी औलाद बिना बटवारा कराये हुये रहती है तो मुश्तरका खानदान होता है, ऐसे मुश्तरका खान्दानमें दो तरहके मेम्बर होते हैं, ( १ ) जो 'कोपार्सनरी' में शामिल होते हैं और ( २ ) वह जिनको सिर्फ रोटी कपड़ा मिलनेका हक़ रहता है।
'कोपार्सनरी' मुश्तरका खान्दानके उन आदमियोंके गिरोहको कहते हैं जो मुश्तरका खानदानमें चार क़िस्म के अधिकार रखते हैं देखो - दफा ३८४, ४०१.
दफा ३९९
कोपार्सनरी तीन पीढ़ी में रहती है
जहां कि एक आदमीको मुश्तरका खानदानकी जायदादमें हिस्सा मिलता है तो उसकी तीन पीढ़ी तककी पुरुष सन्तान उस हिस्से में अपनी पैदाइशसे हक़ प्राप्त कर लेती है, इस तरहपर 'कोपार्सनरी' की हिस्सेदारी बढ़ती जाती है । 'कोपार्सनरी' की हिस्सेदारी हमेशा इस शर्तकी पाबन्द है, कि जो आदमी अपने हिस्सा पानेका दावा करता हो उसे उस पूर्वज से तीन पीढ़ी के अन्दर होना चाहिये जिसने कि हिस्सा पाया है; यानी तीन पीढ़ीसे ज्यादा फासलेका न हो । जब कोई तीन पीढ़ी से ज्यादा हो तो वह इस कोपासेनरीके हक़का हक़दार नहीं होगा क्योंकि 'कोपार्सनरी' हमेशा तीन पीढ़ीमें रहती है । कोपार्सनरीके चार मुख्य सिद्धांत यह हैं-
( १ ) कोपार्सनरी, मूल पुरुषसे शुरू होती है और मूल पुरुष भी उसमें शामिल रहता है । मूल उसे कहते हैं जिससे वह खान्दान बना हो देखो दफा ३८४.
(२) कोपार्सनरी, मूल पुरुष और उसकी तीत पुश्तोंमें रहती है (लड़का, पोता परपोता ) मूल पुरुषको मिला कर चार पुश्तों में देखो दफा ३८६.