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दफा ३४४-३६७]
कोपार्सनरी
पानेका होता है। इसलिये जब मुश्तरका खानदान अर्थात् शामिल शरीक परिवारमें जायदादका मिलना, या बटवाराकी नालिश करना हो तो सबसे पहले यह निश्चित करो कि, वह आदमी जो जायदाद पानेका अपनेको हकधार बताता है या बटवारा करा पानेका हकदार बनता है 'कोपार्सनरी' के फैलावके अन्दर है या नहीं। अगर वह उसके अन्दर नहीं होगा तो उसे उपरोक्त हक प्राप्त नहीं होगा इसलिये नीचे 'कोपार्सनरी' को विस्तारसे सम. झाते हैं। दफा ३९७ बार सुबूत उसपर होगा जो बटा हुआ ख़ानदान
बयान करे कोपार्सनरी, हमेशा मुश्तरका खानदानमें होती है और हिन्दू खानदान आमतौरसे धर्म शास्त्रोंमें मुश्तरका माना गया है तथा अदालतमें भी वह पहले मुश्तरका मान लिया जाता है। इसी सबबसे जो पक्षकार इसके विरुद्ध क्यान करता हो, यानी मुश्तरका नहीं है, ऐसा बयानकरता हो तो इस बातके साबित करनेका भार उसी पक्षकारपर होगा, जो मुश्तरका नहीं बयान करता है। देखो-ट्वेिलियन हिन्दू लॉ पेज २१४ तथा एवीडेंस एक्ट नं० १ सन १८७२. ई०की दफा १०३.
दिवेलियन हिन्दुलॉ में कहा गया है कि "हर एक हिन्दू खान्दान स्नानपान और पूजन और जायदादमें शामिल शरीक मान लिया जाता है, और उस खान्दानकी जायदाद मुश्तरका मानली जाती है, इसलिये वार सुबूत उस पक्षकारके ऊपर होगा जो खान्दानको अलहदा होना बयान करता हो" नजीरें देखो--रिवनप्रसाद बनाम राधाबीबी (1846) 4M I. A. 137, 168; नरांगुटी लछमीड़वाम्हा बनाम बेंगामा नैडू (1861) 9 M. I. A. 66, 92, 1W. R. P. C. 30, 32; नीलकिस्टो देव बरमोने बनाम वीरचन्द्रथाकुर (1869) 12 M. I. A. 623, 540; 3 B. L. R. P. C. 13, 17; 12 W. R. P. C. 21, 28; मुसम्मात चिथ्या बनाम मिहीलाल बाबू ( 1867) 11M. I. A. 369; प्रीतकुंवर बनाम महादेवप्रसादसिंह-(1894) 21 A. 184, 135; 22 Cal. 85,89; भगवती मिसराइन बनाम दुमन मिसराइन (1875) 24 W. R.C. R 3653 तारकचन्द्र पोदार बनाम जुदीशरचन्द्र कुण्डू ( 1873 ) 11 B. L. B. 193; 19 W. R. C. R. 178; शिवप्रसाद चक्रवर्ती बनाम गङ्गामनी देवी-(1871) 16 W. R. C. R. 294; कासिमभाई अहमदभाई बनाम अहमदभाई हुव्वीभाई (1887) 12 Bom. 280, 309; पिलाशकुंवर वनाम भवानीवकस नरायण W. R. (1864) C. R, 1. विश्वम्भर सरकार बनाम सुरधनी दासी 3 W. R. C. R. 21; त्रिलोचनराय बनाम राजकिशनराय (1866 ) 5 W. R. C. R. 214; वीरनारायन सरकार बनाम तीनकौड़ीनन्दी (1864) 1 W. R. C. R. 316; और देखो दफा ४२२.