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दफा ३८६-३६३]
मिताक्षरा लॉके अनुसार
खानदानकी चाल लागू होगी देखो--बटो कृष्ण नाहक बनाम चिन्तामणि नाइक 12 Cal. 262 जब कोई आदमी किसी मुश्तरका खानदानमें अकेला और पारिनरी मालिक हो तो उसके मरनेपर भी मुश्तरका खानदान टूट जाता है और उसकी जायदाद, अगर वह किसीको न दे गया हो तो उत्तरा. धिकारके अनुसार उसके वारिसको मिलती है देखो--इस पुस्तकका नवां प्रकरण । दफा ३९३ अलग रहनेसे मुश्तरका ख़ानदान नहीं टूट जाता
हिन्दू समाजमें शामिल शरीक परिवार, आम तौरसे होता है वह खानपानमें, पूजनमें, और जायदादमें जुड़ा रहता है, देखो रघुनन्द बनाम ब्रजकिशोर 1 Mad. 69, 81; 3. I A. 154. अगर जायदाद, बटवारा होकर अलहदा हो जाय, तो फिर वह खानदान शामिल शरीक नहीं गिना जाता । और अगर मुश्तरका खानदानके आदमियोंका रहन सहन और पूजन तथा खान पान अलहदा भी हो, तो ऐसी सूरतमें वह खानदान अलहदा नहीं माना जायगा; देखो-गनेशदत्त बनाम जीवाच (1908) 31 Cal. 262; 31. I. A. 10.
जब कोई:हिन्दू मिताक्षरा लॉ के आधीन हो और उसके पुत्र हों तथा वे अलाहिदा अलाहिदा रहते हों; तो यह नहीं माना जा सकता किं पिता भी
पने पत्रोंसे अलाहिदा है. जैनारायण बनाम प्रयागनारायण 21 L. W. 162; 20 W. N. 157; 85 I. C.21; L..R. 6 P.C.73; 27 Bom. L. R. 713; (1925) M. W. N. 13; 29 C. W. N. 775; 3 Pat. L. R. 255; A. I. R. 1925 P. C. 11; 48 M. L. J. 236 (P.C.).
क़ब्ज़ा मुखालिफ़ाना नहीं होता-यदि किसी संयुक्त परिवारका कोई सदस्य परिवारसे बहुत दिन तक बाहर रहा हो, तो कब्ज़ा मुखालिफ़ानाका प्रश्न नहीं उठता, जब तककि उस सदस्यका परिवारसे खारिज किया जाना था उसकी अनुपस्थितिके कारण परिवारका त्याग न साबित किया जाय । इस दशामें उसके हिस्सेका इन्तकाल, किसी अन्य सदस्य द्वारा नहीं किया जा सकता, या यदि उस संयुक्त खान्दानके किसी अन्य सदस्यने उसके हिस्से का इन्तकाल किया हो तो उसकी पाबन्दी उसपर नहीं हो सकती । गोबिन्द स्वामी चेटियर बनाम कोयण्डा बानी चेटियर A. I. R. 1927 Mad. 111.
किसी अविभक्त यानी गैर बटे हुये साझीदारके खिलाफ़ बिना उसकी जानकारी या उसके झानके कब्ज़ा मुखालिफ़ाना नहीं हासिल किया जा सकता। गोविन्द स्वामी चेटियर बनाम कोयण्डा वानी चेटियर A. I. R. 1927 Mad. 111,