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दफा ४११-४१२]
कोपार्सनर
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अर्थात् इसे यो कहिये कि पोता अपने दादासे जबकि उसका बाप जिन्दा हो, या परपोता अपने परदादासे जबकि उसका बाप या दादा कोई जिन्दा हो तो कोई भी बालिग कोपार्सनर बटवारा नहीं करा सकता-अर्थात् पापके मरने पर पोता अपने दादासे और बाप और दादा दोनोंके मरनेपर परपोता अपने परदादासे बटवारा करा सकता है।।
__ साझीदार द्वारा--यदि किसी संयुक्त हिन्दू परिवारके किसी सदस्यने कोई इन्तकाल किया हो, जिसकी पाबन्दी दरहकीकत परिवारपर नहीं है,
और वह सदस्य मर जाय, और दूसरे जीवित सदस्य भी मर जाय, तो भावी वारिसोंको अधिकार होगा कि इस प्रकारके इन्तकालका विरोध करें। सरजू प्रसाद बनाम मङ्गलसिंह 23 A. L J. 254; L. R.6 A. 201; 47 All. 490; 87 I. C. 294; A. I. R. 1925 All. 339. उदाहरण-ऐसा मानो कि अ, मुश्तरका खानदानका मूलपुरुष है। अ,का
लड़का क,है और ख,पोता है तथा ग, परपोता है। सब जिंदा हैं, ऐसी सूरतमें ख, बटवारा करालेना चाहता है अ, से। तो वह नहीं करा सकता क्योंकि खं, का बाप क, जबतक जीता
रहेगा बटवाराका हक कभी स्त्र,को नहीं प्राप्त होगा। अब ऐसा I मानो कि ग, बटवारा करालेना चाहता है अपने परदादा , ग से। वह नहीं करा सकता क्योंकि ग,का बाप और दादाजिंदा
हैं जब दोनों मरजायें तब ग, को बटवारा करापानेका हक परदादासे होगा बीचमें नहीं होगा। दफा ४११ कोपासेंनरका मरना
जब कोई कोपार्सनर मरजाय तो बाक्री ज़िंदा कोपार्सनरही उस जायदादके मालिक होते हैं । क्योंकि सरवाइवर शिप (देखो दफा ५५८ ). के हक के साथ कोपार्सनर अपना हक्क रखते हैं। एक कोपार्सनरके मरनेपर उसकी चौथी पुश्त कोपार्सनर बनजाती है जैसाकि कोपार्सनरीमें बताया गया है. देखो-राजनरायनसिंह बनाम हीरालाल E Cal. 142; पार्वती कुमारी देबीश्रीमतीरानी बनाम जगदीशचन्द्र चौवल ( 1902) 29 I. A. 827 29 Cal. 4337 6 C. W. N. 490; 4. Bom. L. R. 365; सातोकुंवर बनाम गोपाल साहू ( 1907 ) 34 Ca1. 929; 5 Mad. 362.
अगर सब कोपार्सनर मरगये हों और अब कोई भी कोपार्सनर बाकी मरहे तो फिर मुश्तरका खानदानकी जायदाद उत्तराधिकारके अनुसार उस आदमीके वारिसको पहुंचती है जो कोपार्सनरोंमें सबसे अखीरमें मगहो। दफा ४१२ कोपार्सनरके मरनेसे मुश्तरका व्यापार नष्ट नहीं होता - जब मुश्तरका खानदानका कोई व्यापार चलरहा होतो किसी एक कोपार्सनरके मर जानेसे वह व्यापार बंद नहीं होसकता जिस तरहसे कि किसी