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नावालिग्री और वलायत
चौथा प्रकरण
[ पांचवां प्रकरण
दफा ४३ वलीके व्यवहार तथा कार्यक्रमके निर्धारण करनेकी आज्ञायें तथा उन आज्ञायोंका प्रयोग
(१) अदालत स्वयं ही या नाबालिग के किसी सम्बन्धीके दरख्वास्त देने पर ऐसे वलीके बर्ताव व कार्यक्रमको निर्धारित कर सकती है जिसे उसने स्वयं नियुक्त या घोषित किया हो ।
(२) जबकि किसी नाबालिग्र के एक से अधिक वली हों और वह सब नाबालिकी भलाई के किसी प्रश्न पर सहमत न होते हों तो उनमें से कोई भी अदालत की राय मांग सकता है और अदालत जैसा उचित समझे उस विवादास्यद प्रश्नपर अपनी आज्ञा दे सकती है ।
(३) इस दफा की पहली उपदफा अर्थात् ४३ ( १ ) में अदालत हुक्म देने से पहिले दरख्वास्तकी इत्तला या अपने हुक्मकी इत्तला वलीको देगी । इस नियमकी पाबन्दी उस समय न की जावेगी जबकि हुक्ममें देर होने से हुक्मका प्रभावही जाता रहे ।
(४) अगर इस दफाकी पहिली या दूसरी उपदफा अर्थात् ४३ ( १ ) या ४३ ( २ ) में दिये हुये हुक्मोंकी तामील न की जावे तो उस हुक्मकी तामील जाबता दीवानी की दफा ४६२ व ४९३ में दिये हुये हुक्म इम्तनाईकी तरह कराई जा सकेगी। उपदफा ( १ ) में नाबालिग मिस्ल मुद्दई समझा जावेगा व वली बतौर मुद्दालेहके तथा उपदफा (२) में दरख्वास्त देने वाला वली मुद्दई व न देने वाला मुद्दालेह माना जावेगा ।
(५) कलक्टर के लिये जो अपने पद ही के कारण वली बनाया गया हो केवल उपदफा (२) में दी हुई कार्रवाई ही काममें लाई जा सकेगी और कोई कार्रवाई ऐसे कलक्टरके लिये लागू न होगी ।
दफा ४४ नाबालिग्रको अधिकार सीमासे हटानेका दण्ड
अगर अदालत द्वारा नियुक्त या घोषित किया हुआ वली अपने नाबा लिएको दफा २६ में दिये हुये नियमोंके विरुद्ध अदालतके अधिकार सीमासे बाहर इस उद्देश्य से ले जावे कि अदालत उसपर अपने अधिकारका प्रयोग न कर सके तो ऐसे वलीको अदालतकी आज्ञानुसार १०००) एक हज़ार रुपये तक जुर्माना या छः मास तककी क़ैद दीवानी हो सकेगी।