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मुश्तरका खानदान
छठवां-प्रकरण
मिताक्षरालॉके अनुसार नोट-मुश्तरका खानदान वह कहलाता है जिसमें एक कुटुम्बके बहुतसे लोग शामिल शर्गक रहते हों और किसी तरहका अलगाव न हो । इसीको अविभक्त परिवार, अविभाजित परिवार या कुटुम्म, बिना बटा हुआ परिवारं, अविच्छिन्न परिवार, संयुक्त परिवार या कुटुम्ब, तथा मुस्तरका खानदान आदि नामोंसे कहते हैं । हिन्दुओंमें प्रायः सब लोग संयुक्त परिवारमें रहते हैं। इस प्रकरणमें शामिल शर्गक कुटुम्बकी सीमाका विस्तार, अधिकार, जिम्मेदारियां तथा कौन जायदाद शामिल शरीक है और कौन नहीं, जायदादका इन्तकाल मंसूख कराना और हकदारके मरनेपर उसके हिस्सेकी जायदाद किन लोगोंको मिलेगी, इत्यादि बातों का उल्लेख किया गया है ।
दफा ३८४ हिन्दू ख़ानदान मुश्तरका होता है
आम तौरपर हिन्दू खानदान मुश्तरका होता है, इसीलिये अदालतोंमें हिन्दू खानदान पहले मुश्तरका ( शामिल शरीक ) मान लिया जाता है जब तककि उसके खिलाफ साबित न किया जाय । मगर यह बात ज़रूर है, कि मुश्तरका खानदानमें जिस कदर दूरकी रिश्तेदारी होती जायगी उसी कदर बमुक़ाबिले नज़दीकी रिश्तेदारीके उस खानदानका मुश्तरका माना जाना कमज़ोर होता जायगा; अर्थात् दूरकी रिश्तेदारीको मुश्तरका मानना कमज़ोर होगा: देखो-मोरू विश्वनाथ बनाम गनेश 10 Bem. H. C. 444, 468; प्रीतकुंवर बनाम महादेवप्रसाद 21 I, A. 134; S. C. 22 Cal. 85.
_जब किसी हिन्दू खानदानमें बटवारा करानेसे अलहदगी हो जावे तो भी वह अलहदगी अधिक समयतक कायम नहीं रह सकती क्योंकि जब कोई आदमी अपने भाई या दूसरे हिस्सेदारसे अलहदा होगया और अलहदा होने के बाद उसके लड़का पैदा होगया, तो वह आदमी जो अलहदा हुआ था एक नये मुश्तरका खानदानका मुखियाहो जाता है वह उसका मूल पुरुष कहलाता है। इस नये खान्दानमें उसके बेटे, पोते, परपोते, शामिल हैं। इस अलहदा