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नाबालिगी और पलायत
[पांचवां प्रकरण
जायदादके बयनामेके लिये डिस्ट्रिक्ट जज द्वारा दी हुई कानूनी स्वीकृति गार्जियन एन्ड वार्ड्स एक्टकी दफा ३१ के अनुसार उस बयनामेको जायज़ नहीं बना सकती। दफा ३१ में डिस्ट्रिक्ट जजको यह अधिकार है कि वह बयनामेकी केवल उस दशामें स्वीकृति दे जबकि वह उस बयनामेकी श्रावश्यकता और लाभपर मुनासिब जांच करले । अतएव इस प्रकारकी जांचकी कमीका अर्थ जजके उस मामले में न्याय करनेके अधिकारका अभाव है और परिणाम स्वरूप उसका इस प्रकारका आदेश निरर्थक है। किसी व्यक्ति विशेष की किसी विशेष परिस्थितिके अतिरिक्त भी यह एक श्राम सिद्धान्त है कि कोई व्यक्ति जब वह किसी अमानती अवस्थामें हो तो उसे अपनी उस अवस्थासे लाभ उठानेका अवसर न मिलना चाहिये और अदालत किसी मनुज्यको ऐसी अवस्थामें न होने देगी जहां परकि उसका स्वार्थ उसे एक ओर खीं वे और उसका कर्तव्य उसे दूसरी ओर। जबकि नाबालिग़की जायदादका खरीदार नाबालिग्रका विश्वासपात्र होता है और वह विश्वासका दुरुपयोग करता है और उसके द्वारा धोखे और बेईमानीसे स्वयं लाभ उठाता है तथा अपने मित्रोंको लाभ पहुंचाता है उस अवस्थामें वह बयनामा माजायज़ समक्षा जाता है बिना इस बात पर ध्यान दिये हुये कि उसके सम्बन्धमें दफा ३१ के अनुसार डिस्ट्रिक्ट जजकी स्वीकृति प्राप्त करली गई है, क्योंकि इस दशामें जजकी स्वीकृति धोखेबाजी द्वारा प्राप्त की हुई समझी जाती है और धोखेबाजी एक ऐसी हरकत है जिसके कारण कोर्ट, अाफ़ जस्टिसकी कार्यवाइयां नाजा. यज़ हो जाती हैं । जब दफा ३१. द्वारा दी हुई जजकी स्वीकृति निरर्थक साबित हो जाती है, तो नाबालिग्रको अधिकार हो जाता है कि वह दफा ३० के अनुसार बयनामेको नाजायज़ करार दे। मोहनलाल बनाम मोहम्मद आदिल 120. L. J. 453; 89 I. C. 69, 20W.N. 601.
--गा० दफा ३१ और ४८--नाबालिग़की जायदादके बेचने के लिये डिस्ट्रिफ्ट जजकी स्वीकृति पर न केवल धोखेबाजीके बिना परही एतराज़ किया जा सकता है बल्कि दफा ४१ (२) के आदेशोंमें से किसीके भी पालन न करने पर किया जा सकता है। रामदीनसिंह बनाम रामसुमेरसिंह 27 0. C. 2847 A. I. R. 1925 Oudh 237,
-गा० दफा ३२--जायदादसे किसी अन्य मनुष्यके कब्जेको उठानेके न्यायाधिकार वलीके अधिकार और अवस्था--
___ एक संयुक्त परिवारके सभी सदस्योंने अपनी जायदादकी संरक्षा और उसकी आमदनीसे कुछ चढ़ा हुआ ऋण चुकाने के लिये तीन ट्रस्टी नियत किये,
और उनमेंसे एककी मृत्युके पश्चात् उसकी विधवा नाबालिग पुत्रकी धारिस नियत कीगई और प्रस्तुत दूस्टियोंके साथ जायदादके प्रबन्धके लिये एक अतिरिक्त दूस्टी बनाई गई वह दूसरे ट्रस्टियोंसे असन्तुष्ट हुई और डिस्दूिक्ट