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दत्तक या गोद
[चौथा प्रकरण
(३) रिवर्ज़नर वारिस इस दफा से मजबूर नहीं किया जा सकता अगर दत्तक होने के ६ साल तक रिवर्ज़नर वारिस (देखो दफा ५५८) दत्तक के नाजायज़ करार दिये जाने के वास्ते नालिश न करे, तो इस दफा की वजेह से इतना समय निकल जाने पर भी वह दत्तक यदि नाजायज़ है तो जायज़ नहीं माना जायगा । अर्थात् उसकी नालिशका हक न मारा जायगा।
रिवर्ज़नर-वारिस ( देखो दफा ५५८) दत्तक नाजायज़ करार दिये जाने का दावा करने के लिये उस सूरत में मजबूर नहीं किया जा सकता, जब किसी हिन्दू विधवा ने दत्तक लिया हो, और वह ( रिवर्ज़नर-वारिस) विधवा के मरने के बाद, विधवा के पति का उत्तराधिकारी हो नज़ीर देखोहरी बनाम बाई रेवा ( 1895 ) 21. B. 376.
उदाहरण-ठाकुर दिग्विजयसिंह और विजयसिंह दोनों सगे भाई हैं आपसमें बटेहुये खानदानमें रहते हैं। विजयसिंहके दो लड़के हैं और दिग्विजय सिंह के कोई लड़का नहीं है। दिग्विजयसिंह मर गये और उनकी सब जाय दाद उनकी विधवा को वरासतन् मिली जिसपर विधवा ने क़ब्ज़ा किया। विधवा ने एक लड़का गोद लिया, यह गोद सन् १६०० ई०में लिया गया। सन् १६०३ ई०में विजयासंहको गोदकी खबर मिली और विधवा मरी सन् १६१० ई० में ठाकुर विजयसिंह जायदाद पाने का दावा दत्तक पुत्र के मुक़ाविले में कर सकते हैं क्योंकि उन्हे विधवा के मरने पर जायदाद मिलने का हक़ पैदा हुआ।
ऊपर के उदाहरण से मालूम हो जायगा कि जब विजयसिंह को सन् १६०३ ई० में गोद की खबर मिली थी तो उन्हे ६ सालके अन्दर गोद मंसूखी का दावा करना चाहिये था, मगर यह मियाद विधवा की जिंदगी में वितीत होगई । अगर दफा ११८ मियाद क़ानून के अनुसार देखिये तो अब वह दावा नहीं कर सकते मगर यह दफा ऐसी सूरत में लागू नहीं की गई क्योंकि दिग्विजयसिंह का रिवर्जनरी वारिस विजयसिंह था। विजयसिंह को कानन मियाद की दफा १४१ के अनुसार नालिश करने का हक्न बाकी रहा है, देखो-इस किताब की दफा ३१५ पैरा १.
(४) कसी सूरत में इस दफा से तमादी हो जायगी-जहां पर कि प्रतिवादी ने अपना दत्तक साबित न किया हो मगर उसने अपना दत्तक ठीक मान रखा हो, और वादा को इस वात को मालूम हुये ६ साल बीत गये हों तो वह मुकद्दमा इस दफा ११८ के असरसे तमादी हो जायगा अर्थात् बादी दावा नहीं कर सकेगा, नज़ीर देखो-वेरट बनाम वेरट 25 Bom 26.
“वादी को इस बात का मालूम होना'' इन ऊपरके शब्दोंका ठीक ठीक अर्थ समझ लेना चाहिये । इस बारे में देखो-अधिलक्ष्मी बनाम वेंकट रामया