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दफा ३१७]
दत्तक सम्बन्धी नालिशोंकी मियादें
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( 1902 ) 14 M. L. J. 359; इस नज़ीर में बताया गया है कि “ज्ञान होना चाहिये” उस कहे जाने वाले दत्तक का नहीं, बल्कि उन सच्ची बातों . का और सूरतों का जो दत्तक को जायज़ बना सकती थीं। सच्ची बात का कुछ न कुछ आधार होना चाहिये, और कहां तक यह शर्त डिकरी देने के सवाल में विश्वास की जा सकती है यह हर एक केस में उसके मामलों पर से ज़ाहिर होगी।
(५) सर मेरेडिथप्लाउड़न साहेब की राय-देखो ( 1903 ) 5 Bom. L. R. 584; में हाईकोर्टने यह निश्चय किया कि सिर्फ दत्तक होना तो कहा जाता हो और कुछ नहीं । तो यह दफा ११८ ऐसी सूरत में लागू करने के लिये काफी नहीं होगी। लेकिन यह दफा क्या उस वक्त भी लागू नहीं होगी जबकि कोर्टको शहादत में यह मालूम हो जाय कि दत्तक कभी नहीं हुआ या दत्तक होने का कोई ज़ाहिरा सुबूत नहीं है ?
(1894) P. R. 73 F. B. में सर मेरे डिथप्लाउ हुन् साहेब ने फरमाया कि एसी सूरत में यह दफा लागू नहीं होगी। दफा ११८ उन सूरतों के लिये है जहां कि एक आदमी जिसको कि दत्तक लेने का अधिकार है अपने उस अधिकार को ठीक तौर से काम में नहीं लाता, देखो--( 1905) P. R. 86 F. B. दफा ३१७ अनधिकारीके दत्तक लेनेमें यह दफा लागूनहीं होगी
जहां पर ऐसे आदमी ने या किसी विधवा ने दत्तक लिया हो जिसे दत्तक लेने का अधिकार ही नहीं था तो वहां पर यह दफा ११८ लागू नहीं होगी। क्योंकि वहां पर तो दत्तक के अधिकार ही का अभाव है। और न यह ११८ दफा वहां लागू पड़ेगी जहां पर दत्तक लेने वाला जिस क़ानून मुक्कामी से पाबंद किया गया है उस कानून में दत्तक लेने की कोई रसम है ही नहीं जैसे कि मिथिला में विधवा का दत्तक लेना । ( 1911) P. R. 44; में फुल बेचने उस फैसले का अर्थ स्पष्ट किया है जो सन् (1908 ) P. R. 71; और (1911) P. L. R. 196. में दोहराया गया था । फुलबेच की राय यह मालूम होती थी कि यह दफा बिल्कुल खराब और नाजायज़ दत्तकों में लागू नहीं होगी। यह दफा उस बक्त लागू होगी जबकि सिर्फ दत्तक के रद्द कर देने का दावा किया गया हो, और जायदाद पाने का दावा न किया गया हो, देखो-( 1903 ) 5 Bom. L. R. 584, (1903 ) 27 Bom. 614.