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दत्तक या गोद
दत्तकका परिशिष्ट
[ चौथा प्रकरण
यह प्रकरण सात बड़े भागों में समाप्त किया गया। पाठक, इसके पढ़नें या किसी मामले का विचार करते समय, प्रथम प्रकरणमें कहा हुआ 'हिन्दूलॉ के स्कूलों का वर्णन' खूब ध्यानमें रखें । क्योंकि स्कूल भेदसे अर्थात् स्थान भेदसे दत्तकमें फ़रक़ पड़ जाता है जैसे यदि किसीने गोद लिया और पीछे असली लड़का पैदा होगया तो दोनों के परस्पर बटवारामें यह फ़रक पड़ेगा कि बम्बई में गोदके लड़केको पांचवां हिस्सा, बङ्गालमें तीसरा हिस्सा बनारस में चौथाई हिस्सा मिलता है । इसी तरह पर वर्ण भेदको भी न भूल जाइये। जैसे द्विजों में और शूद्रोंमें गोद लेनेका विधान एक नहीं माना गया । गोद वास्तवमें हुआ या नहीं हुआ यह प्रश्न, गोदके विधानकी क्रिया पर निर्भर है, दोनों में एकही प्रकारकी गोदकी क्रिया नहीं है ।
कैसा लड़का गोद लिया जा सकता है और कौन लड़का जायज़ माना जाता है अथवा कौन लड़के गोद नहीं लिये जा सकते और अगर वे लिये गये हों तो नाजायज़ क़रार पावेंगे । इत्यादि प्रश्नोंके विचार करने में सपिण्ड, असपिण्ड, दत्तक पुत्रकी असली माताका विवाह सम्भव होना, इत्यादि नियम अनेक ऊपर बताये गये हैं उनका ध्यान तत्सम्बन्धी प्रश्नमें कदापि न छोड़ जाइये | आज कल दीवानी अदालतों की गति विधिसे यह मालूम होता है कि वे प्राचीन हिन्दू धर्म शास्त्रोंकी अवहेलना करती जा रही हैं। अङ्गरेजी क़ानूनके उद्देश्योंके भाव पैदा करती जा रही हैं जैसे प्राचीन हिन्दू धर्म शास्त्र में गोद लेने के सपय दत्तक हवन, विशेषकर द्विजोंके लिए अत्यावश्यक था । पहले दीवानी अदालतोंका रुखभी बहुतसे तत्सम्बन्धी फैसलोंसे यही प्रतीत होता है कि वे आवश्यक समझती थीं, अनेक गोद इसी आधारपर खारिज होगये कि उनमें दत्तक हवन न किया गया था मगर अब नये फैसलोंका रुख बदल गया है वे एक प्रकारसे कन्ट्राक्टके रूपमें उसे मानने लगे हैं ।
अब सिर्फ लड़केको देना और लेना साबित हो जाने से दत्तक जायज़ मान लिया जाता है । द्विज और शूद्रमें इस विषय में कोई फ़रक विशेष रूप से नहीं समझा जाता हां भारतकी किसी विशेष प्रांतकी विशेष कौमके रवाज की बात पृथक् है । इसलिये आप सचेत और सतर्क भावसे किसी विषयका अन्तिम निर्णय करनेके लिये पूर्वापर विचार करके पढ़ें ।