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दफा ३२१ ]
अग्रवाल वैश्योंकी उत्पत्ति
गयीं । चुनार और मारवाड़ के अग्रवाल अपने अपने स्थानों में निवास करने का सम्बत् इसी समय से बताते हैं । वे अब इस वक्त इस जाति में बड़े प्रतिभाशाली तथा धनवान पुरुष गिने जाते हैं । मुसलमान पठान संम्राटों के शासन के सारे पूर्व काल में अग्रवालों की दशा बड़ी हीन थी । ब्रिटिश राज्य में जैसे सुख से अब वे निवास करते हैं वैसा ही इसके विपरीत वे पहिले दुःख भोग चुके हैं । निदान जब मुगुल संम्राटों का राज्य हुआ तब इन अग्रवालों की दशा सुधरने लगी इनके शासन काल में अग्रवालों को कई उच्चपद भी मिले थे ।
ग्रह निवासी इस जाति के जन्मदाता उग्रसेन के १७ पुत्र हुये थें जिन से अग्रवालों के सत्रह गोत्र चले हैं । गोत्रों के नाम यह हैं ( १ ) गर्ग, ( २ ) गोइल, ( ३ ) गावाल, (४) बात्सिल, (५) कासिल, ( ६ ) सिंहल, ( ७ ) मंगल, (८) भद्दल, ( ६ ) तिंगल, ( १० ) परण, (११) टैरण, (१२) टिंगल, ( १३ ) तित्तल, (१४) मित्त, (१५) तुन्दल, (१६), तायल, (१७) गोभिल, और गवन अर्थात् गोइनगोत्र आधा गोत्र है । आजकल गोत्रोंके नामों में कुछ अक्षर उलट पलट भी गये हैं। इस विषय में ईलियट साहेब की अधिक शब्द संग्रह पुस्तक देखो जिल्द १ तथा एलफिस्टेन कृत भारत का इतिहास देखो जिल्द २ पेज २४१.
" इस ग्रन्थकर्ता को, अग्रवालों के कई मुक़द्दमोंमें गोत्रोंके नाम साबित करने का काम पड़ा है । गोत्रों के नाम इस प्रकार बताये गये थे ( १ ) गरगोत्र, ( २ ) गोलगोत्र ( ३ ) कच्छलगोत्र ( ४ ) मंगलगोत्र, (५) विंदलगोत्र ( ६ ) ढ़ालनगोत्र, (७) सिंगलगोत्र, (८) चीतलगोत्र, ( ६ ) मीतलगोत्र, (१०) तुम्गलगोत्र, ( ११ ) तायलगोत्र, ( १२ ) कन्सलगोत्र, (१३) वांसल - गोत्र, ( १४ ) नागलगोत्र, (१५) ईदलगोत्र, (१६) डेहरनरगोत्र, ( १७ ) एरणगोत्र, (३) गवनगोत्र, या गोनगोत्र, पहिले के नामों से अबके नामों में अक्षरों का फरक होगया है और बोलते बोलते उच्चारण भी बदल गया है सिवाय पांच गोत्रों के नामों के बाक़ी का उच्चारण क़रीब क़रीब मिलता जुलता है देखिये - ( १ ) गर्ग - गर, (२) गोइल - गोइल ( ३ ) वात्सिल - वांसल, ( ४ ) कासिल - कन्सल, (५) सिंहल - सिंगल, (६) मंगल - मंगल, ( ७ ) तिंगल - तुन्गल, (८) परण-परन, (६) टैरण - डेहरण, (१०) टिंगल-ढालन ( ११ )मित्त - मीतल (१२) तायल - तायल ( १३ ) गवन या गोइन - गवन या गोन । मगर पहिले कहे हुये पांच गोत्रों का उच्चारण आज कलके उच्चारणों से अधिक फरक डालता है जैसे गावाल, मद्दल, तित्तल, तुन्दुल, गोभिल, यह नाम पहिले बोले जाते थे अब कच्छल, बिंदल, चीतल, नागल, ईदल, बोले जाते हैं यह एक दूसरे से बहुत कम मिलते हैं । यह निश्चय नहीं होता कि जो गोत्र मैंने आज कल के बोले जाने वाले बताये हैं सब जगहों पर एक