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दफा ११२-११३]
दत्तक लेनेके साधारण नियम
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(८) बम्बई और अजमेर - बम्बई और अजमेरके कोर्ट आफ वाईस के कानूनों में इस विषयकी कोई व्यवस्था नहीं रखी गई है, Bom Act 1 of 1905; अजमेर Regulation 1 of 1888. दफा ११२ पतिकी जिंदगी में पत्नीका दत्तक लेना
पतिके धार्मिक कृत्य पूरा करने और उसका नाम चलाने के लिये गोंद लेना कहा गया है--
अपुत्रेणसुतः कार्यों यादृक् तादृक् प्रयत्नतः पिण्डोदकक्रिया हेतो नाम संकीर्तनायच ।
पिण्डदानऔर तर्पणकी क्रिया करनेका अधिकार पुरुषको है और जो गोद इस मतलब से लिया जायगा वह पतिकी बिना मरज़ी नहीं लिया जा सकता, क्योंकि गोद पतिके लाभके लियेही लिया जाता है । इस लिये पतिको अधिकार है कि बिना मञ्जूरी स्त्रीके गोदले सकता है,चाहे उसकी स्त्री राजी भी न हो । इसी आधारपर स्त्री अपने पतिके सिवाय दूसरे के लिये गोद नहीं ले सकती है। देखो--रङ्गम्मा बनाम आचम्मा 4 M. I. A. 27 S. C.7 Suth. (P.C.) 57.
मिथिला स्कूलमें स्त्रीऋत्रिम दत्तकले सकती है। देखो दफा ३०५-३१२.
नरेन्द्रनाथ वैणी बनाम दीनानाथ दास 36 Cal.824; में माना गया कि कोई हिन्दू स्त्री किसी हालत में सिर्फ अपने लिये दत्तक नहीं ले सकती, यह राय वसिष्ठके इस वाक्यपर निर्भर है--
नस्त्रीपुत्रं दद्यात् प्रति गृह्णीयादा अन्यत्रनुज्ञानाद्भर्तुः
अपने पतिकी आज्ञा बिना स्त्री कोई पुत्रको दे या ले नहीं सकती, इस काक्यका अर्थ प्रत्येक स्कूलों में भिन्न भिन्न किया गया है। देखो दफा ११८. दफा ११३ दत्तकके बदले में रुपया दिये जानेका असर
दत्तक पुत्रके बदले में दत्तक पुत्रके असली पिता या माताको कोई रकम देने या देनेका वायदा करनेसे दत्तक नाजायज़ नहीं होगा, जो और सब तरह से योग्य हो; देखो-मुरू गप्पा चही बनाम नागप्पा ची 29 Mad. 161. बम्बई और मदरास प्रांत में यदि विधवाने उचित सपिण्डकी मजूरी, रुपया देकर प्राप्तकी हो तो इससे गोद नाजायज़ नहीं होगा। 36 Mad. 19; 30 Mad. 405 ( 1907)