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दफा १२१-१२३ ]
विधवाका गोद लेना
अधिकार एक से ज्यादा विधवाओं को दिया गया हो तो यदि बड़ी विधवा गोद लेने से इनकार करे तो छोटी दत्तकले सकती है; देखो - मन्दाकिनीदासी बनाम आदिनाथ 18 Cal. 69. छोटी विधवाको बिना बताये और बिना उसकी सलाहके यदि बड़ी विधवा अपने पति के सपिण्डों की मजूरी से कोई दत्तक ले ले तो वह नाजायज़ नहीं होगा। छोटी विधवासे सलाह नहीं लेना यद्यपि अनुचित है किन्तु उस दत्तकको जो और सब तरहसे जायज़ है, नाजायज़ बनाने की यह वजह काफी नहीं होगी, देखो --ठट्ठानायक बनाम मंजाम्मल 15 M. L. J. 143; नारायणसामी नायक बनाम मंजाम्मल 28 Mad. 315; इसका नतीजा यह है कि छोटी विधवा बिना मञ्जुरी बड़ी विधवाके गोद नहीं ले सकती और बड़ी विधवा ले सकती है । यह क़ायदा उसी सूरतसे सम्बन्ध रखता है जहां दोनों विधवाएं अपने पतिके बतौर वारिसके क़ाबिज़ हों । नीचे का मुकद्दमा देखो:
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१ । लक्ष्मीबाई
जीवनराव
| २ काशीबाई
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दत्तकपुत्र
लड़का ( मरगया)
जीवनराव दो विधवा और एक लड़का जो काशी बाईका था छोड़कर मर गया बड़ी विधवा लक्ष्मीबाई और छोटी काशीबाई है । लड़के के मरजाने के बाद काशीबाई बतौर मांके उसकी वारिस हुई और जायदाद पर क़ाबिज़ हुई । उसके बाद लक्ष्मीबाई ने एक लड़का पति के लिये गोद लिया । अदालत से यह तय हुआ कि गोद नाजायज़ है और यह कि अगर उसने काशीबाई की रजामन्दी भी प्राप्तकर ली हो तो भी यह दत्तक जायज़ नहीं होता; देखोआनन्दवाई बनाम काशीबाई 28 Bom 461.
यह अभीनक निश्चित नहीं हुआ कि जब अनेक विधवाऐं हों और सब - को गोद लेनेका अधिकार दियागया हो तो क्या वे दत्तक जायज़ माने जांगे ? देखो 37 Mad. 199-221; 41 I. A. 51; 29 Mad 437; 17 C. W. N. 319.
संयुक्त विधवाओंका विरोध - यदि दत्तकके रस्मके सम्बन्धमें ठीक धार्मिक अभिप्रायका हवाला मिलता है तो अदालतको उचित है कि वह यह समझे कि विधवाने धार्मिक अभिप्रायसे प्रभावान्वित होकर गोद लिया है न कि स्वेच्छाचारसे । संयुक्त विधवाओंके विरोध में गोदका लिया जाना या कोई अन्य सम्बन्धका समझना व्यर्थ है । महाराजा कोल्हापुर बनाम सुन्दरम् अय्यर 48 Mad, I AIR 1925 Mad 497,