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दफा २५३]
दत्तक लेनेकी शहादत कैसी होना चाहिये
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तरीक्नेसे दत्तकसे इनकार नहीं कर सकता मगर वह यदि ऐसी सूरत न होती तो दावा कर सकता था। देखो; गोपालयान बनाम रघुपति एय्यान 7 Mad. H. C. 250, सदाशिव बनाम हरिमोरेश्वर 11 Bom H. C. 190, रावजी विनायकराब बनाम लक्ष्मीबाई 11 Bom 381, 3963 कन्नामल बनाम बेरा सामी 15 Mad. 486; सानटप्पा एप्पा बनाम राम गप्पा यय्या 8 Mad. 397, 54 सुखबासी बनाम गुम्मान 2 All. 366; कुंवरजी बनाम बाबाई 19 Bom. 374; 18 Mad. I. L. R. 397; 15 Mad. I. L. R. 486.
(२) यह बात अयोग्य जान पड़ती है कि जिस पुरुषने दत्तकके बारे में इतनी पैरवी की हो, और वह उसके लिये किसी तरहसे भी कोई बाधा उसके लाभमें न डाल सके । मुमकिन है कि उसने बिना समझे, नेकनियतीसे या गलतीसे दत्तकके सम्बन्धमें कोशिश की हो और रज़ामन्दी ज़ाहिरकी हो मगर उस गलतीके सबबसे दूसरेको नुकसान, या तकलीफ पहुंचे तो ऐसी प्रलती चाहे कैसी भी हो स्वीकारके योग्य नहीं है। जिसकी तरफसे उपरोक्त काम किया गया हो उसे अपने बयानके बदलनेका अथवा उस बयानके असर के हटाने के उद्योग करने का मौका क्या देना चाहिये ? देखो; पारवती बनाम रामकृष्णा 8 Mad. I. L. R. 145 उपर की राय पलती से स्वीकार की गई थी।
(३) कब जायज़ माना जायगा-सन् १८६७ ई० में लिया हुआ दत्तक, यदि दत्तककी मृत्यु पर्यन्त किसीने गोद लेनेके सम्बन्ध में कोई एतराज़ नहीं किया. तो अदालत उसे जायज़ समझेगी। पी० सम्बा शिव सानियल बनाम रामासामी सास्त्रियल 86 I. C. 772; A. I. R. 1925 Mad. 803, 48 M. L. J. 353.
(४) यह उस व्यक्तिका कर्तध्य है जो यह स्वीकार करता हो कि गोत्र लिया गया है तो उसका प्रमाणदे । किन्तु यदि यह प्रमाणित होजाय कि गोद साधारणतया जायज़ है और उसकी तमाम रस्मे यथावत् की गई हैं तो उस मनुष्य का जो उसका विरोध करे, यह कर्तव्य होगा कि वह इस बाल का प्रमाण दे, कि किस विशेष रस्मकै न करने से वह नाजायज़ है। ( Knnedg T,J.C. and. Pereual. A.J. C.) मुष बन्दीबाई बनाम श्रीमती कुन्दी बाई 88 I.C. 57 37 A. I. R. 1925 Sind. 228.
(५) विधवा द्वारा गोद लेना--गोद लेने के लिये प्रति की आशा थीदत्तकको चालीस वर्ष तक फरीकैन मुतालिका मय मुद्दईके जायज़ समझा थागोद लेने वाली विधवा के ढङ्ग में किसी प्रकार की स्वेच्छाचारिता का अभियोग नहीं -दत्तक उस घरमें जहां कि वह गोद लिया गया था उसके एक सदस्य की भांति लगातार रहता रहा-मुद्दई और अन्य मनुष्य जायज़ दत्तक