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दत्तक लेनेका फल क्या है
( ६ ) दत्तक लेने का फल क्या है
दफा २५४ - २५६ ]
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दफा २५६ दत्तक पुत्र वारिस नहीं होता
दत्तक पुत्रका पहिले के कुटुम्ब से जिस में वह पैदा हुआ है नाता छूट जाता है, और उस कुटुम्ब से बिल्कुल सम्बन्ध टूट जाता है वह उस कुटुम्ब का लड़का कहलाता है जिस कुटुम्बमें गोद लिया गया है उसे पूर्व पिता का नाम बदलकर नये पिताका नाम उपयोग में लाना पड़ता है । और नये पिता की धार्मिक कृत्य सब करना पड़ती है उसे ऐसा समझना चाहिये कि जब दत्तकपुत्र नये कुटुम्ब में आता है तब उसका नामकरण संस्कार भी किया जाता है यानी दूसरा नाम रखा जाता है । दत्तकपुत्र जिसवक्त नये कुटुम्बमें प्रवेश करता है उसे सब वारिसाना अधिकार जहां तक उसके सम्बन्ध में पहुँचते हैं सब प्राप्त हो जाते हैं । जब कोई लड़का अपने असली कुटुम्बसे दूसरे नये कुटुम्ब में दत्तक चला जाता है तो असली कुटुम्बकी जायदादका वारिस नहीं होता नीचेके उदाहरण देखो-
अपने असली कुटुम्बिकी जायदादका
उदाहरण - ( १ ) माणिकचन्दके दो लड़के हैं हीरालाल और मोतीलाल, मोतीलाल को माणिकचन्द ने गोद दे दिया और पश्चात् वह मरा तो माणिकचन्द की जायदाद का वारिस हीरालाल होगा मोतीलाल नहीं होगा क्योंकि वह गोद चला गया था ( २ ) खानदान शामिलशरीकर्मे शिवराम, शिवलाल, और शिवदास तीनों सगे भाई हैं। शिवरामका शिवप्रसाद, शिवलाल का शिवचरण, शिवदासका शिवदत्त पुत्र है । शिवप्रसाद को शिवरामने गोद दे दिया तो खानदानी जायदाद के वारिस पांच आदमी रहेंगे । शिवप्रसादका कोई हक़ पिताकी जायदादमें बाक़ी नहीं रहा क्योंकि वह दत्तक चला गयाथा ।
दत्तक प्रथा के अनुसार गोद लिये जाने के पश्चात् गोद लिया हुआ व्यक्ति, सही अर्थ में, अपने कुदरती खान्दान से सब सम्बन्ध परिच्छेद कर देता है। उसके और उसके कुदरती पिता के खान्दान के मध्य के समस्त सम्बन्धोंका अन्त हो जाता है ।
इस अलाहिदगी में किसी प्रकार की कसर शेष नहीं रहती, वह सम्पूर्ण होती है । अलाहिदगी, रक्त सम्बन्धके कारण, जो किसी प्रकार भी नहीं त्यागा जा सकता, किसी प्रकार कमनहीं समझी जाती । वह अपने खान्दानी पिताके खानदान में मनाही की हद तक ब्याह करनेसे वर्जित है । वह अपने कुदरती पिता के खानदान से किसी प्रकार सम्बन्ध नहीं रखता, और उसका कुदरती